________________
महामन्न नौकार अयं व्याच्या (पदक्रमानुसार) | 123 पचाध्यायीकौर ने अरिहन्त की सबसे बड़ी विशेषता उनके लोकोपकारी एष धर्मोपदेशक होने म मानी है।
'दिव्यौदारिक देहस्थो धोनधाति चतुष्टय ।
ज्ञानदृग्वीय सौख्या सोहन धर्मोपदेशक ॥", महामन्त्र है इसे प्रमुख रूप से आध्यात्मिक जिजीविषा के लिए माना जाता है। इसमे चमत्कार को कोई स्थान नहीं है। जो णमोकार मन्त्र की साधना नहीं कर सकते उ हे चमत्कार की भाषा ही समझ मे आती है। साधना करने के बाद जब अनुभति हो जाती है तो मनुष्य को अन्दर मे ही शक्ति का अनुभव होने लगता है। चमत्कार अरिहन्त परम्परा के विरुद्ध है क्योकि अरिहन्त की परम्परा मे धारणा के द्वारा सप्रविजयस्त्र त हो जाती है। धारणा और ध्यान इनका मूल कारण है। अरिहताण म दो प्रकार की साधना की जारी है। एक अर-कठ से नाभि की ओर और फिर ह-शरू करो-ण्ठ से नाभि तक जाओ। फिर बाद मे सुषम्ना के बीच तक । कण्ठ से नाभि तक फिर नाभि से सुषुम्ना तक शद्ध करके मस्तिष्क तक पहुचना फिर इस शरीर में यात्रा करना यह जो तरीका है यही सिद्धि का रास्ता है। इसम चमत्कार जैसी कोई बात नही है।
मन्त्र की प्रभाव प्रक्रिया
जिस प्रकार औषध का हमारे शरीर पर रासायनिक प्रभाव पडता है उसी प्रकार मन्त्र का भी पड़ता है। मन का प्रभाव शरीर को पार कर चैतन्यशक्ति पर भी पड़ता है। वीरे धारे हम रे मन को कसने वाली दवोचने वाली प्रवत्तिया क्षीण होकर समाप्त हो जाती है। मन्त्र का प्रबेक अक्षर चिन्तन मदु उच्चारण एव दीघ उच्चारणो के आधार पर प्रभाव क्रम पैदा करता है।
हमारी चेतना के प्रमुख तीन प्रवाह व द्र हैं- ६डा पिगला और मुषुम्ना । वास्तव में ये तीन श्वास स्वर है । इडा बाया स्वर है पिगला दाया स्वर है और सुषुम्ना मध्य स्वर है। बाया और दाया स्वर ही
1 पञ्चाध्यायी 402 2 तीर्यकर दिस. 1980-10 10c-मनि सुशील कुमार जी