________________
120 / महामन्त्र मौकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
affचिकर हो जाते हैं । अत स्पष्ट है कि मानव के आध्यात्मिक fare मे सबसे ast बाधा है सासारिक रिश्तो में घोर रागात्मकता, सासारिक सुख-सम्पति के प्रति अटूट लगाव ।
यह आसक्ति यह लगाव एक ऐसी मदिरा है जिसमें मानव का नमस्त विवेक पूर्णतया नष्ट हो जाता है। इस एक अवगुण के आ जाने पर अन्य अवगुण तो अनायास आ ही जाते है । इसी प्रकार मन से आसक्ति हट जाने पर सारे विषय भोग स्वत सूखकर समाप्त हो जाते हैं । णमोकार मन्त्र के द्वारा भक्त की उत्कट चैतन्य शक्ति (आभामंडल ) निर्णायक एव निर्माणकारी दिशा मे परिवर्तित होती है। ज्यो- ज्यो मन्त्र भक्त के चैतन्य मे उतरता जाता है त्यो त्यो उसका सब कुछ उदीप्तीकृत होता जाता है ।
" मन्त्र आभामण्डल को बदलने की आमूल प्रक्रिया है । आपके आस-पास की स्पेस और इलेक्ट्रो डायनेमिक फील्ड बदलने की प्रक्रिया है ।"
X
X
X
अरिहन्त मजिल है, जिसके आगे फिर कोई यात्रा नही है । कुछ करने को न बचा जहा, कुछ पाने को न बचा जहा, कुछ छोड़ने को भी न बचा जहा, सब समाप्त हो गया । जहा शुद्ध अस्तित्व रह गया, प्योर एक्जिस्टेस जहा रह गया, जहा गन्ध मात्र रह गया, जहा होना मात्र रह गया, उसे कहते है अरिहन्त ।
X
X
X
afer अरिहन्त शब्द है निगेटिव - नकारात्मक । उसका अर्थ है जिनके शत्रु समाप्त हो गये। यह 'पॉजिटिव' नही है, विधायक नही है । असल मे इस जगत् मे जो श्रेष्ठतम अवस्था है, उसको निषेध से ही प्रकट किया जा सकता है।" है ससीम है, छोटा है, नहीं असीम है बडा है । नहीं बहुत विराट है । इसीलिए परमशिखर पर रखा है अरिहन्त को ।
1. 'महावीर वाणी' पु० 41 42 - ले० श्री रजनीश