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________________ 108 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण आधार पर केवल चौगसी आसन ही मान्य एवं प्रचलित हैं। आङ् उपसर्ग पूर्वक सन् धातु से सज्ञारूप आसन शब्द निष्पन्न होता है। आज का अर्थ है-मर्यादा पूर्वक तथा पूर्णतया और सन् का अर्थ है-बैठना या ठहरना। स्पष्ट है कि आसन से शरीर का ही नही मन का भी परिष्कार होता है । मन्त्र-पाठ मे भी आसन का अपना विशिष्ट महत्त्व योगी अथवा गृहस्थ को चाहिए कि वह ध्यान के लिए उचित स्थान एव उचित आसन को चने । सिद्धक्षेत्र, जलाशय (नदी तट, समुद्र तट) पर्वत, अरण्य, गुफा, चैत्यालय अथवा एकान्त, शान्त, पवित्र स्थान आमन के लिए उपयोगी है। आसन चौकी पर, चट्टान पर, बालुका पर या स्वच्छ भूमि पर लगाना चाहिए। पद्मासन, पर्यकासन, वज्रासन, सुखासन, कायोत्सर्ग एवं कमलासन ध्यान के लिए उपयोगी आसन है। साधक अपनी शारीरिक शक्ति के अनुरूप आसन लगा सकता है। बिछावन को अर्थात् चटाई आदि को भी आसन कहा गया है। सून, कुश, तण एव ऊन का आसन हो सकता है। ऊन का आसन श्रेष्ठ माना जाता है। शरीर यन्त्र को साधना के अनुरूप बनाना ही आसन का उद्देश्य है। शरीर की पूरी क्षमता श्रेष्ठ योग साधना के लिए परमावश्यक है। योगासन और शारीरिक व्यायाम मे अन्तर है। शारीरिक व्यायाम केवल शरीर की पुष्टता तक ही सीमित है। परन्तु योगासन मे शारीरिक स्वास्थ्य, मन और वाणी की निर्मलता का साधन माव है। सामान्यतया आसनो के तीन प्रकार है-१. ऊर्वासन-खडे होकर किया जाता है। २. निषोदन आसन-बैठकर किया जाता है। ३. शयन आसन-लेटकर किया जाता है। इन आसनों के कुछ प्रकार ये भी है-कर्वासन-सम्पाद, एकपाद, कायोत्सर्ग निषीदन-पद्मासन, वीरासन, मुखासन, सिद्धासन, भद्रासन। शयन आसन-दण्डासन, धनुरासन, शवासन, मत्स्यासन, गर्भामन, भुजगासन । शुभचन्द्राचार्य कृत ज्ञानार्णव मे पद्मासन और कायोत्सर्ग ये दो ही आसन ध्यान करने के लिए श्रेष्ठ बताए गये हैं।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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