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से घबराकर आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिये। उस महिला को दुराचारी का यथाशक्ति हर प्रकार से विरोध करना चाहिये। हाथो से, नाखूनो से, दातो से, चाल से, जैसे भी सम्भव हो उसका विरोध करे। बहुधा दुराचारी व्यक्ति किसी प्रकार का प्रलोभन देकर, शारीरिक कष्ट का भय दिखलाकर, परिवार व समाज मे बदनामी का भय दिखलाकर, उस महिला के पति व सन्तान आदि की हत्या कर देने का भय दिखलाकर, महिलाओ से आत्मसमर्पण करा लेते हैं । परन्तु इस प्रकार आत्मसमर्पण करने से उस महिला का तो सर्वनाश होता ही है, दुराचारियो का साहस भी बढ़ता है और वे और भी अधिक दुराचार करते हैं। यदि दुराचारी को यह पता चल जाये कि उसकी धमकियो का कुछ भी असर होने वाला नहीं है, और यदि वह दुराचार करने का प्रयत्न करेगा तो उसे भी कष्ट भोगना पड सकता है तो वह दुराचार से दूर ही रहेगा और दुराचार का प्रयत्न करने से पहले चार बार सोचेगा।
यहा पर यदि कोई व्यक्ति यह तर्क करने लगे कि धर्म की मान्यता तो यह है कि जो कोई व्यक्ति हमको कष्ट पहुचाता है, वह हमारे अपने ही द्वारा पूर्व मे किये हुए पापो के फलस्वरूप ही पहुचाता है, इसलिये जब हमको हमारे पापो का ही दण्ड मिल रहा हो तो वह कष्ट हमे समतापूर्वक सह लेना चाहिये। हम उसका प्रतिकार क्यो करे? ___ यह ठीक है कि हमको जो भी कष्ट मिलता है वह हमारे अपने ही द्वारा पूर्व मे किए हुए पापो के फलस्वरूप ही मिलता है और इसीलिए गृहत्यागी साधु उस व्यक्ति का न तो प्रतिकार ही करते है, न उसके प्रति अपने मन में कोई दुर्भावना ही लाते हैं। वह उस कष्ट को समतापूर्वक