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प्रतिरोध करें। यदि आक्रमणकारी का प्रतिरोध नहीं किया जायेगा तो विदेशियो द्वारा उनका देश पददलित किया जायेगा । आक्रमणकारी का पूरी शक्ति से विरोध न करके अहिसा को रट लगाना निम्न श्रेणी की कायरता है और कायरता स्वय ही एक महापाप है। किसी पर अत्याचार करना हिसा है, पाप है, परन्तु बिना विरोध किये किसी का अत्याचार सहना तथा अत्याचारी के आगे आत्मसमपंण कर देना महापाप है। क्योकि ऐसा करने से अत्याचारी का साहस बढ़ता है और वह और भी अधिक अत्याचार करने लगता है। इससे देश तथा समाज की मर्यादा और व्यवस्था ही भग नहीं होती, वरन् महान क्षति भी होती है।
हमे आक्रमणकारी का हर हालत में विरोध करना है। इसके अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग ही नही है। यदि हममे इतना आत्मबल है कि हम शस्त्रो के बिना भी उसके सामने खडे रह सकते हैं और उसकी नैतिकता को जगा सकते हैं तो इससे अधिक अच्छा दूसरा उपाय नही है । परन्तु यदि हममे इतना आत्मबल नही है या आक्रमणकारी मे नैतिकता की कोई भावना ही शेष नही है तो हमको शस्त्रों के द्वारा ही उसका प्रतिकार करना होगा। लेकिन हमारे हृदय मे उसके प्रति किसी प्रकार की कटुता व अन्यथा कष्ट पहुचाने की भावना नही आनी चाहिए। हमारा लक्ष्य तो कम-से-कम बलप्रयोग द्वारा अपनी सुरक्षा करना होना चाहिए । अपनी सुरक्षा करते हुए उसको कोई हानि होती होया कष्ट पहुचता हो तो इसमे हमारा कोई दोष नहीं है।
यहा पर एक प्रश्न यह उठ सकता है कि यदि आक्रमणकारी हमसे बहुत अधिक बलवान है और हम यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़