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हमको अपने थोडे से ज्ञान पर गर्व न करके दूसरो के विचारो का भी आदर करना चाहिए। "जो मेरा है वह सत्य है" इस प्रकार का दुराग्रह छोड़कर हमको कहना चाहिए कि " जो सत्य है वह मेरा है।" ऐसे विचार रखने से तथा इसी प्रकार का व्यवहार करने से अहिंसा व शान्ति को बहुत बढावा मिलता है। इसके विपरीत केवल अपनी ही बात का दुराग्रह करने से द्वेष फैलता है, और हिंसा को बढावा मिलता है ।
इस प्रकार ऊपर लिखे व ऐसे ही अन्य कार्यों से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हिसा होती है व हिसा को बढावा मिलता है। ये कार्य ऐसे नही हैं कि जिनके बिना हम अपना जीवन व्यतीत न कर सकें। हमे ऐसे कार्यों का यथासम्भव त्याग कर देना चाहिए। हम जो भी कार्य करे बहुत ही सावधानी व विवेकपूर्वक करे और अपने मन मे सदैव इस प्रकार की भावना रखें कि हमारे किसी भी कार्य से किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुचे ।
सावधानी पूर्वक कार्य करने से अहिसा धर्म के पालन के साथ-साथ अपनी भलाई भी होती है। यदि हम देखभाल कर चलेंगे तो इससे दूसरे जीवो की रक्षा तो होगी ही, हमारा स्वय का पैर भी किसी गड्ढे व कीचड मे नही धसेगा और पत्थर आदि से नही टकरायेगा । इसी प्रकार बिना देखे - भाले कपडे पहनने से हमे कई बार विषैले जीव-जन्तु काट लेते हैं। बिना देखे भाले तथा रात्रि को भोजन करने से विषैले जीव-जन्तु व अन्य हानिकारक पदार्थ हमारे पेट मे चले जाते हैं, जिससे कि हमको कष्ट उठाना पडता है । हम प्रतिदिन समाचारपत्रो मे ऐसी असावधानी से हुई दुर्घटनाओ के समाचार पढ़ते रहते हैं ।
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