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नही बोलने चाहिएं, जिनसे किसी प्राणो को कष्ट पहुचने की सम्भावना हो, जैसे किसी शिकारी को यह बतलाना कि पशु अमुक दिशा में गया है। ___ (३) धन को मनुष्य का प्राण कहा है । धन की हानि होने पर मनुष्य को बहुत कष्ट होता है। इसलिए किसी का धन व अन्य वस्तुए चोरी करना या छल-कपट से अपहरण करना भी हिंसा ही है।
यदि भूल से किसी व्यक्ति की कोई वस्तु गिर जाये तो ऐसी वस्तु भी हमको नहीं लेनी चाहिए। क्योकि याद आने पर वह व्यक्ति उस वस्तु को अवश्य खोजेगा और न मिलने पर उसको कष्ट होगा। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति हमारे पास कोई वस्तु धरोहर के रूप मे रखकर भूल जाये, तो ऐसी वस्तु को भी अपनी मान लेना अनुचित है। हमको वह धरोहर वापिस कर देनी चाहिए। अपनी वस्तु को भूल जाने के कारण चाहे उस व्यक्ति को कोई कष्ट भले ही न हो, परन्तु हमारे अपने विचार तो खराब हो ही जाते हैं और हम सदैव यही इच्छा करते रहते हैं कि उस व्यक्ति को उस वस्तु की याद न आये तो अच्छा है।
(४) कम तोलना, कम नापना, बढिया वस्तु के स्थान पर घटिया वस्तु देना और उसमे मिलावट करना, अधिक मूल्य पर चीजो को बेचना अर्थात् अनुचित लाभ कमाना भी हिंसा है। कम और घटिया वस्तु देने से लेने वाले व्यक्ति को आर्थिक हानि होती है । मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य खराब हो जाता है और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है। मिलावटी ओषधिया तो विष के समान ही होती हैं। उचित स्तर की वस्तु के स्थान पर घटिया वस्तु के प्रयोग से बहुधा भयंकर दुष्परिणाम घटित
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