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कहते हैं, "हमे यह विचार रुचिकर प्रतीत होता है, अतः हम इस क्रिया से सन्तुष्ट हैं ।"
( यहा पर भी महात्मा बुद्ध ने भगवान महावीर की सर्वज्ञता का प्रतिवाद नही किया - लेखक )
बौद्ध ग्रंथ " दीर्घ निकाय" के प्रथम भाग में लिखा है" निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र ( भगवान महावीर ) सघ के नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शन विशेष के प्रणेता हैं, विशेष विख्यात हैं, तीर्थङ्कर हैं, बहुत मनुष्यो द्वारा पूज्य हैं, अनुभवशील हैं । बहुत समय से साधुचर्या करते हैं और अधिक वय वाले हैं।"
"मज्झिम निकाय" भाग १ मे महात्मा बुद्ध कहते हैं कि "नाथपुत्र ( भगवान महावीर ) सब कुछ जानते हैं, समस्त पदार्थों को देखते हैं, उनका ज्ञान असीम है ।"
"अगुत्तर निकाय " मे कथन है कि "निगठ नातपुत्त ( भगवान महावीर ) सर्वदृष्टा थे, उनका ज्ञान अनन्त था और वे प्रत्येक क्षण पूर्ण सजग व सर्वज्ञ रूप मे ही स्थित रहते थे ।"
"सयुक्त निकाय" मे उल्लेख है कि “निगठ नातपुत्त ( भगवान महावीर ) यह बता सकते थे कि उनके शिष्य मृत्यु के उपरान्त कहाँ जन्म लेंगे ? विशेष मृत व्यक्तियो के सम्बन्ध मे जिज्ञासा करने पर उन्होने बता दिया कि अमुक व्यक्ति ने अमुक स्थान मे, अमुक रूप मे नया जन्म धारण किया है ।"
बौद्ध विद्वान धर्म कीर्ति ने जैन तीर्थङ्करो की सर्वज्ञता को स्वीकार करते हुए "न्याय बिन्दु" नामक ग्रन्थ के अध्याय ३ में लिखा है
"जो सर्वज्ञ या आप्त हुआ है, उसी ने ज्ञान आदि का उपदेश दिया है। जैसे ऋषभ, वर्द्धमान (महावीर) आदि ।"
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