________________
बहुत से उच्च कोटि के वैज्ञानिक आत्मा के अस्तित्व और पुनर्जन्म के सिद्धान्त को निःसंकोच स्वीकार करने लगे हैं। * अन्त मे इस सम्बन्ध मे हम बौद्ध ग्रन्थों से कुछ उद्धरण देते हैं ।
( मज्झिमनिकाय, देवदह सुत्तन्त. ३-१-१)
एक समय महात्मा बुद्ध शाक्यों के देवदह निगम में विहार करते थे । उस समय उन्होने भिक्षुओ को आमंत्रित किया और उनसे निगठ नातपुत ( भगवान महावीर ) के सिद्धान्त पर चर्चा की। महात्मा बुद्ध ने कहा, "मेरे एक प्रश्न के उत्तर मे निगठो (भगवान महावीर के अनुयायी मुनि) ने मुझसे कहा, 'आवुस । निगठ नातपुत्त सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, अखिल ज्ञान दर्शन को जानते हैं । चलते, खड़े रहते, सोते, जागते सर्वदा उन्हें ज्ञान दर्शन उपस्थित रहता है। वे ऐसा कहते हैं, 'आवुसो निगठो । जो तुम्हारे पूर्वकृत कर्म है, उन्हें इस कड़वी दुष्कर तपस्या से नष्ट करो । इस समय काय, बचन व मन से तुम सवृत्त हो, यह तुम्हारे भविष्य के पाप का अकारक है । इस प्रकार प्राचीन कर्मों की तपस्या से समाप्ति होने पर व नये कर्मों के अनागमन से भविष्य में तुम अनास्रव हो जाओगे । भविष्य में अनास्त्रव होने से क्रमश कर्म-क्षय, दुखक्षय, वेदनाक्षय और सभी दुख निर्जीर्ण हो जायेंगे ।" इतना वर्णन करके महात्मा बुद्ध भिक्षुओ से कहते हैं "यह सिद्धान्त हमे रुचिकर लगता है। इससे हम सतुष्ट हैं।"
* टिप्पण : इस विषय पर हमारे द्वारा प्रकाशित "सच्चे सुख का मार्ग" नाम की पुस्तक का अवलोकन करें जो हमसे निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं ।--
-प्रकाशक
३५