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________________ में इसी प्रकार के संकड़ो मन्त्र हैं, जिनमें देवताओ से अपने शत्रुओं के विनाश के लिए और स्वयं को आरोग्यता, सुखसमृद्धि, स्त्री-पुत्र आदि प्रदान करने के लिए प्रार्थनाएं की गयी हैं। इस प्रकार इन धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा अपने लिए सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए, एक दीन-हीन व्यक्ति के समान, देवताओ की कृपा की आकाक्षा की जाती थी । परन्तु भगवान महावीर ने जनसाधारण को इस दैन्य से छुटकारा दिलाया। उन्होंने ससार को बतलाया कि अपनी आत्मा के कल्याण के लिये किसी भी व्यक्ति को परमुखापेक्षी होने की आवश्यकता नही है । कोई भी व्यक्ति स्वय अपने ही सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है और अन्तत मुक्ति प्राप्त कर सकता है। भगवान महावीर ने बतलाया कि धन-वैभव, स्त्री-पुत्र आदि बाह्य पदार्थं सच्चे सुख के कारण नही हैं। सच्चा सुख किसी भी बाह्य साधन की अपेक्षा नही रखता । सच्चा सुख तो अपनी आत्मा मे ही है और वह स्वयं अपने ही सम्यक् पुरुषार्थं, अहिंसा, सयम, तप, त्याग, ध्यान आदि के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ-साथ भगवान महावीर ने ब्राह्मण वर्ग के वर्चस्व ( इजारेदारी) पर भी करारी चोट की। उस समय जितने भी वैदिक यज्ञ व अनुष्ठान आदि होते थे, वे केवल ब्राह्मण ही करते थे। बड़े से बडा राजा भी ब्राह्मणों की स्वीकृति और उनके सक्रिय सहयोग के बिना कोई भी धार्मिक कार्य नही कर सकता था। धर्म का सारा ढाँचा ही ब्राह्मणों के ऊपर आधारित था । परन्तु भगवान महावीर ने बतलाया कि किसी भी धार्मिक कार्य तथा अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए किसी भी अन्य २७
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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