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मेरी भावना
( लेखक - स्वर्गीय श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार 'युगवीर')
( सच्चे देव का लक्षण और उनकी भक्ति मे लीन रहने की भावना) जिनने राग द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया, सब जीवो को मोक्ष मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उनको स्वाधीन कहो, भक्ति भाव से प्रेरित हो यह, चित्त उन्ही मे लीन रहो ॥१॥
( सच्चे साधु का लक्षण और उनका सत्सग करते रहने की भावना) विषयो की आशा नही जिनके, साम्य भाव घन रखते हैं, निज पर के हित साधन मे जो, निश दिन तत्पर रहते हैं । स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं, ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख समूह को हरते है || २ || रहे सदा सत्सग उन्ही का ध्यान उन्ही का नित्य रहे, उन ही जैसी चर्य्या मे यह, चित्त सदा अनुरक्त रहे ।
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( पाचो पाप व अन्य दुष्प्रवृत्तियों को त्यागने की भावना)
नही सताऊ किसी जीव को, झूठ कभी नही कहा करू, परधन - वनिता पर न लुभाऊं, सतोषामृत पिया करू || ३ || अहकार का भाव न रक्खू, नहीं किसी पर क्रोध करू, देख दूसरो की बढती को, कभी न ईर्षा भाव धरूं ।
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