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होकर नहीं बैठना चाहिए, अपितु हर समय मृत्यु के स्वागत के लिये तैयार रहना चाहिए। मृत्यु के आने के समय हमे यह पश्चाताप नही हो कि कुछ समय और मिल जाता तो हम अपने आत्म-कल्याण के लिये कुछ कर लेते। अत मनुष्य जन्म की सार्थकता इसी में है : -कि हम सदैव शुद्ध, सात्विक व शाकाहारी भोजन ही सेवन करे, जिससे हमारा शरीर, मन व बुद्धि सदैव स्वस्थ बने रहें, -कि हम किसी भी जीव को किसी भी प्रकार का
कष्ट देने का विचार भी अपने मन में न लावें, -कि हम सदैव परोपकार मे लगे रहे, -कि हम इस ससार, अपने शरीर व आत्मा की वास्तविकता को जानकर सदैव अपनी आत्मा के कल्याण मे तत्पर रहे।