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"जो लोग अण्डे, मास खाते है, मैं उन दुष्टो का नाश करता है ।" - अथर्ववेद, काण्ड ८, वर्ग ६, मन्त्र १३
" हे अग्नि । मास खाने वालो को अपने मुंह मे रख । " - ऋग्वेद १०-८७-२ "हे मित्र । जो पशु का मास खाते है उनके सिर फोड़ डालो ।"
- ऋग्वेद १०-८७-१६
गुरु नानक देव के विचार है
"सब राक्षस जैसे क्रूर पुरुषो को प्रभु का नाम जपाया । उनसे मास खाने की आदत छुडवाई । उन राक्षस पुरुषो ने जीवो को वध करने की आदत छोड़ दी । सच कहा है महात्माओ की सगति सुख देने वाली होती है ।"
- नानक प्रकाश (पूर्वार्ध - अध्याय ५५ देत राक्षस का प्रसग ) "हम तुम्हारे यहा भोजन कदापि नही कर सकते, क्योकि तुम सब जीवो को दुख देने वाले हो । सबसे पहले तुम मास खाना छोडो, जिस कारण तुम्हारा जीवन नष्ट हो रहा है। दुख देने वाली तामसी वृत्ति को छोडकर सुखकारी प्रभु की भक्ति मे लग जाओ ।"
- ( नानक प्रकाश, पूर्वार्ध, अध्याय ५५) " कपडे पर खून लगने से कपडा गन्दा हो जाता है । वही घृणित खून जब मनुष्य पीवेगा तब उसकी चित्तवृत्तिया अवश्य ही दूषित हो जायेंगी ।"
- गुरु नानक देव, बार मांझ, महल्ला - १ "जीवो पर दया करना सबसे बड़ा धर्म है। वह पुरुष उत्तम है जो दूसरों पर दया करता है ।"
----माझ महल्ला-५ बाराँ माह (माघ माह )
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