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कभी आदि-प्रारम्भ न हुआ हो अर्थात् जो सदैव से हो। अनन्त-अन+अन्त-का अर्थ है जिसका कभी अन्तविनाश-न हो, अर्थात् जो सदैव तक रहे)। इस संसार की समस्त आत्माए सदैव से हैं और वे सदैव तक रहेंगी। वे अपने-अपने कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न शरीर ग्रहण करती रहती हैं और उन्ही कर्मों के अनुसार सुख व दुख भोगती रहती हैं। जब तक उनके कर्मों का क्षय नही हो जाता, वे कोई-न-कोई शरीर धारण करती ही रहेंगी। जब उनके कर्मों का अभाव हो जायेगा तब वे मोक्ष मे चली जायेगी। मोक्ष मे भी प्रत्येक आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहेगा। इन आत्माओ के अतिरिक्त जो कुछ भी इस ससार मे है वह सब पुद्गल (Matter) है। यह पुद्गल भी सदैव से है और सदैव तक रहेगा । हां, कुछ कारण मिलने पर इनका रूप परिवर्तन होता रहता है। जैसे जहाँ कभी समुद्र था वहा पहाड निकल आते हैं, जहाँ कभी पहाड थे वहाँ समुद्र बन जाते हैं। इसी प्रकार जो सोना कुछ समय पहले कडे के रूप में था, सुनार उसका हार बना देता है। यहा भी कडे का रूप परिवर्तन हो गया परन्तु सोना विद्यमान ही रहा।
इसी प्रकार हम जो वृक्षो को बढता हुआ देखते हैं वह भी कोई नयी वस्तु अस्तित्व में नहीं आ रही । ये वृक्ष भी हवा, पानी, मिट्टी, धूप आदि से पोषक तत्त्व प्राप्त करके बढते रहते हैं । इस प्रकार भगवान महावीर ने बतलाया कि इस ससार का एक भी परमाणु न तो कभी नया बना था और न एक भी परमाणु का कभी विनाश ही होगा। हा, उनका रूप परिवर्तन अवश्य होता रहता है। __ अहिंसा : भगवान महावीर ने देखा कि संसार का