________________
दो की सेवा होगा। इस अवष्य मे उसल यह समझता
जीवो की सेवा-सुश्रुषा करनी होगी, उनके प्रति अहिसक व्यवहार रखना होगा। इस प्रकार अपने वर्तमान सुख के त्याग के फलस्वरूप ही हम भविष्य मे उससे भी कई गुना सुख प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि अपने पडौसी के मकान में आग लगाकर वह अपने मकान मे सुखपूर्वक रह सकता है तो यह उसका भ्रम है। पडौसी के मकान में लगी आग से उसके मकान को भी हानि पहुचेगी। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति हिसक व्यवहार करता है तो उसका सुख प्राप्त करने की आशा करना मृगतृष्णा के समान होगा। अत निष्कर्ष यही निकला कि यदि हम सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो हमे अपना व्यवहार अहिसक ही रखना पडेगा । अर्थात् अहिसा ही समस्त सुखो का स्रोत है।
वास्तव मे अहिसक आचरण केवल धर्म ही नहीं है, यह तो जीने का ढग है, जीने की कला है, जिससे हमे स्वय को भी सुख मिलता है और दूसरो को भी। अहिसा परस्पर सहयोग तथा सह-अस्तित्व को जन्म देती है जबकि हिसा प्रतिस्पर्धा और वैमनस्य की जननी है, जिसका परिणाम है युद्ध और सर्वनाश ।