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वर के सात वचन १-मम कुटुम्बजनानां यथायोग्यं विनयशुश्रुषा कर
णीया ( मरे कुटम्बियों की यथायोग्य सेवा विनय
आदर सत्कार करना) २-मम आज्ञा न लोपनीया । (मेरी आज्ञा को कभी
भंग मत करना) ३-कटु निष्ठुरवाक्यं न वक्तव्यम् ( कड़वा और मर्म
भेदी वचन न बोलना) ४-सत्पात्रादिजनभ्यां गहागतभ्यः आहारादि दाने
कलुषितं मनो न कार्यम् (सत्पात्रादि-मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका आदि के घर आने पर दान देने
में अपने मन को कलषित न करना । ५-रात्री परगहे न गन्तव्यम् ( रात को दुसरं के घर पर
मत जाना) ६-बहुजनसंकीर्णेम्थाने न गन्तव्यम् ( जहां बहुत मे
आदमी एकत्र हो रहे हों ऐसे स्थान पर मत जाना) ७--कुत्मिताधर्मिमद्यपायिनां गहे न गन्तव्यम् (जिनका
आचरण और धर्म खगव है ऐसे मद्यादि पीने वालों के घर पर नहीं जाना चाहिये) एतानि मदुक्तानि वचनानि यदि स्वीकरोषि तदा