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चल पड़ा है। घर के अग्रभाग (फ्रंट) का डिज़ाइन स्वयं सजावट का आधुनिक उद्देश्य पूरा कर देता है; तो भी प्रवेश द्वार पर बंदनवार, कलश, स्वस्तिक, 'शुभ', 'लाभ' आदि की प्रस्तुति आज भी की जाती है।
सज्जा अंतरंग हो या बहिरंग, वह जितनी प्रतीकात्मक या सिंबालिक ( भावनाओं की सूचक हो, उतनी ही अच्छी होगी। झारी (टोंटीदार कलश). कलश, 19 दर्पण, 50 ध्वज 1 चामर, छत्र, व्यजन (पंखा ), सुप्रतिष्ठ (पुस्तक रखने की रिहल) आदि मंगल द्रव्य 2 स्थापित कर मंदिर की सज्जा की जाती है।
उनमें से पूर्ण घट या कुंभ या कलश का विधान आवास गृह के लिए भी है। पूर्ण कलश परिवार को भरापूरा रखता है, उस पर आच्छादित आम्रपत्र सब कुछ हराभरा रखते हैं, उन पर स्थापित नारियल कल्पवृक्ष का प्रतीक है। आते हुए प्रियजन के स्वागत में सुहागिनें कलश लेकर खड़ी होती हैं। साधु का आहार के लिए प्रतिग्रहण नारियल के साथ कलश लेकर किया जाता है। मंदिर की शोभा शिखर से और शिखर की शोभा कलश से है।
निर्माण कार्य में ध्यान रखने योग्य कुछ बातें
ध्यान रखा जाए कि एक कोना दूसरे कोने के बराबर हो, एक आला दूसरे आले के बराबर हो, खूँटे के बराबर खूँटा और खंभे के बराबर खंभा हो । आले के ऊपर कीला या खूँटा, द्वार के ऊपर खंभा, खंभे के ऊपर द्वार, एक द्वार के ऊपर दो द्वार, सम संख्या में खड (मंजिल) और विषम संख्या में खंमे हों; तो कभी भी कुछ भी हानि हो सकती है। आँगन का तिकोना या पॅंचकोना होना भी अनिष्टकारक है। ऐसे घर में कभी नहीं रहना चाहिए, जिसके कोने गोल हों; जिसमें एक या दो या तीन कोने हों, जो दक्षिण की ओर या बायीं ओर लंबा हो । खिड़की इतनी ऊँचाई पर बनाई जाए कि उसके पास की पड़ोसी की खिड़की नीची हो। पड़ोसी के मकान में अंतराल हो, तो कोई बाधा नहीं है। अपनी खिड़की ऊँची रखने से यहाँ तात्पर्य ऊर्जा की बेरोक-टोक प्राप्ति का उद्देश्य पूर्ण करना है। घर के पीछे खिड़की तो क्या, सुई के बराबर छेद भी नहीं रखना चाहिए।
गाय, बैल और गाड़ी का स्थान घर के बाहर दक्षिण में और घोड़े का स्थान उसकी बाईं ओर घुड़साल में हो। घर में अन्य पशु-पक्षी न रखे जाएँ; जैन वास्तु-विद्या
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