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काल की शुद्धता
ज्योतिष की दृष्टि से काल-निर्णय
काल या समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, इसीलिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाने की प्रथा चली होगी। कार्यक्रम अच्छी तरह सोच-समझकर बनाना और उसके अनुसार कार्य सपन्न करना चाहिए-इसी को काल की शुद्धता' कह सकते है; अन्यथा काल-जैसी अलख-निरजन वस्तु की क्या शुद्धता और क्या अशुद्धता? एक व्यावहारिक कार्यक्रम के निर्माण में व्यक्तिगत सुविधाओ, परिस्थितियों, अवसर, मौसम आदि का ध्यान रखा जाता है। इसमे अब कप्यूटर की सहायता भी ली जाने लगी है। इन्हीं आधारों पर सफलता या असफलता का अनुमान लगाकर कार्यक्रम को अतिम रूप दिया जाना चाहिये।
वास्तु-विद्या मे सभी प्रकार के निर्माणो की सफलता के लिए जो उपाय बताए गए हैं, उनमे द्रव्य और क्षेत्र की शुद्धता का स्थान तो उल्लेखनीय है ही, काल का स्थान भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी विशेषता यह है कि निर्माण के आरभ से अत तक ज्योतिष का आश्रय लेकर ही मुहूर्त का निर्धारण किया गया है, जिसके पालन से शुभ फल मिलता है और उल्लघन से अशुभ फल मिलता है।
वास्तु-विद्या मे इस विधान से पूर्व कुछ चक्रों या चार्टी का विधान किया गया है, जिनमे ज्योतिष और ज्यामिति की प्रमुखता है। वत्स चक्र, वास्तुपुरुष चक्र, शेषनाग चक्र, वृष चक्र आदि उनमे प्रमुख हैं। वत्स-चक्र द्वारा मुहूर्त का ज्ञान
जब सूर्य कन्या, तुला और वृश्चिक राशि में स्थित हो, तब वत्स का मुख पूर्व दिशा में रहता है तथा जब सूर्य धन, मकर और कुभ राशि मे स्थित हो; तब दक्षिण दिशा मे रहता है। जब सूर्य मीन, मेष और वृष राशि मे स्थित हो; तब पश्चिम दिशा मे रहता है. तथा जब सूर्य मिथुन, कर्क और सिह राशि मे स्थित हो; तो उत्तर दिशा में रहता है।
(जन वास्तु-विद्या
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