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बायें से दायें होनी चाहिए। उसकी एक पुरुष की गहराई पर बहनेवाले जल की दिशा भी बायें से दायें होनी चाहिए। भूमि का मुख या मस्तक किस दिशा में होने पर किसे क्या फल देगा? इस विषय पर वास्तु-विद्या में बहुत विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
शेषनाग चक्र
उस भूमि पर प्रस्तावित निर्माण और उसके विभिन्न भागो की दिशा पर तो विचार किया ही गया है; यह भी विचार किया गया है कि निर्माण किस दिशा से शुरू किया जाए। उदाहरण के लिए शेषनाग चक्र के अनुसार नींव आदि के लिए भूमि की खुदाई उस स्थान से शुरू नहीं की जाए, जहाँ नाग का अस्तित्व हो । यहाँ 'नाग' या 'शेषनाग का कथन मात्र प्रतीकात्मक है । जैसे कि नाग के सिरभाग पर पैर रखने पर वह हानि नही पहुँचा सकता, जबकि अन्य कहीं पैर रखने पर वह काट लेता है। इसी प्रकार शेषनाग
पूर्व
र. सो. पं. बु. बृ.
सो. पं. बु. बृ शु
ऐशान
(जैन वास्तु-विद्या
शु. श. र.
श र. सो,
बु. बृ शु. शं. र. सो. मं
बु. बृ शु श र. सो. मं
बृ शु श र. सो.
बु.
श. र. सो. म बु. बृ.
र. सो. प्रं. बु. बृ
(੪)
शेषनाग चक्र
बु.
बृ.
शु.
शु श,
र सो मं बु. बृ शु श र.
पश्चिम,
आग्नेय
दक्षिण
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