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समर्पण 'बाहरी' और 'सुन्दरी' की सारस्वत परम्परा
को बीसवीं शताब्दी के
जैन नारी-जगत में पुनर्जीवित करनेवाली
एवं जैन ज्ञान-विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने
के लिये उसके प्रकाशन-आयामों
को जिन्होंने नयी परिभाषा दी
- ऐसी 'लक्ष्मी' एवं 'सरस्वती' के
विरल 'संगम'
की अनुपम मूर्ति स्वर्गीया श्रीमती रमारानी नेन (मातुश्री साह श्री अशोक कुमार नी जैन)
की पुण्य-स्मृति में कृतज्ञ श्रद्धासुमन-स्वरूप समर्पित
-सुरेशचन्द जैन
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