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द्रव्य की शुद्धता
सामग्री के चयन में द्रव्य की शुद्धता भूमि की खरीद पर और निर्माण पर जो धन लगाया जाए वह न्यायपूर्वक कमाया हुआ होना चाहिए। 'सागार- धर्मामृत' (10, 11) में पंडित आशाधर सूरि ने आदर्श गृहस्थ के लक्षणों मे पहला लक्षण लिखा है, 'न्यायोपात्त- धनं' अर्थात्, न्याय से अर्जित किया है धन जिसने, ऐसा व्यक्ति । कायदा-कानून के अनुसार कमाए गए धन से जो निर्माण होगा, उसमें निर्माता निर्मय निश्चिंत रह सकेगा। इससे उसे मानसिक शांति मिलेगी, जिससे वह और भी अधिक धन कमाकर पुण्य के काम कर सकेगा।
मदिर का निर्माण तो पुण्य संचय के लिए ही किया जाता है। उसी के निर्माण मे पाप की कमाई लगाई गई, तो उससे पुण्य की आशा रखना व्यर्थ होगा। कहते हैं कि "दूसरे स्थानों पर किया गया पाप मंदिर में धुल जाता है; यदि मदिर ही पाप की कमाई से बना होगा, तो उससे पाप कैसे धुलेगा 7.35
निर्माण मे जिस सामग्री का प्रयोग हो, वह साफ-सुथरी हो, ऊँचे स्तर की हो, सभ्यता-संस्कृति के अनुकूल हो । सामग्री असली होनी चाहिये, नकली या डुप्लीकेट नहीं। आजकल कृत्रिम (सिंथेटिक) सामग्री का चलन बढ रहा है। प्रयोग से पहले इसके गुण-अवगुण की वैज्ञानिक दृष्टिसे, आयुर्विज्ञान की दृष्टि से भी जाँच करा ली जाए।
जितनी अच्छी सामग्री का उपयोग किया जाएगा, उतने ही अच्छे विचार निर्माता के मन मे आएँगे। अच्छे विचारो से अच्छे काम होंगे, कमाई होगी, शांति मिलेगी, यश मिलेगा।
किसी दूसरे मकान, मदिर आदि से निकली लकड़ी, पत्थर आदि सामग्री अपने मकान, मदिर आदि मे कभी नहीं लगानी चाहिए 36 पुरानी सामग्री नई सामग्री के मुकाबले टिक नहीं सकेगी: दोनो का मेल भी नहीं बैठ सकेगा। पुरानी सामग्री मुरझाई हुई होती है, अतीत के वातावरण से जुडी हुई होती है; इसलिए वह उपयोग करनेवाले को भी पुराना बनाकर (जैन वास्तु-विद्या
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