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वास्तु-विद्या का अर्थ और महत्त्व
वास्तु.विद्या का महत्व ___ वास्तु-विद्या का अर्थ है भवन-निर्माण की कला'। इसी को प्राकृतभाषा में "वत्थु-विज्जा', उर्दू मे 'इल्मे सनाअत' और अंग्रेजी में 'आर्कीटेक्टॉनिक्स' कहते हैं। धर्म, ज्योतिष, पूजापाठ आदि ने मिलकर वास्तुविद्या को अध्यात्म से जोड़ दिया। जिससे उसका प्रचार एक आचार-संहिता की भाँति हुआ है। उससे समाज की आस्था जुड़ी है। यही कारण है कि वास्तु-विद्या अतीत की वस्तु होते हुये भी वर्तमान की वस्तु उससे कहीं अधिक है।
वास्तु-विद्या के प्रति आकर्षण प्राचीनकाल से अब तक बढ़ता ही रहा है। वर्तमान गगनचुबी भवनों, समुद्राकार बाँधों आदि के निर्माण के वर्तमान सिद्धात मूलरूप में वे ही हैं, जो आरंभ से प्रचलित रहे हैं। लगता है, वास्तुविद्या के प्राचीन सिद्धातो पर प्राचीनकाल में उतना व्यापक निर्माण नहीं हो सका, जितना आज हो रहा है।
आज यह विद्या साईस ऑफ आर्किटेक्चर' के रूप मे एक स्वतत्र विषय बन चुकी है। कई विश्वविद्यालयो में इस विद्या के अध्यापन के लिए स्वतत्र विभाग और महाविद्यालय स्थापित किए गए हैं। इस विषय पर उच्चतम स्तर पर शोधकार्य भी हो रहे हैं। वैज्ञानिक सुविधाओ और औद्योगिक आवश्यकताओ ने वास्त-विद्या का एक अत्याधुनिकरूप विकसित किया है। इस विद्या के अप्रत्याशित चमत्कारों की प्रतीक्षा सहजभाव से की जाने लगी है, यही वास्तु-विद्या के महत्त्व का प्रमाण है। निर्माण कार्य : प्राचीन और आधुनिक
मानव-जीवन के अन्य क्षेत्रों की भाँति इस क्षेत्र में भी प्रबल क्राति हई है। प्राचीन परम्पराओं का स्थान अब नई-नई शैलियों और निर्माण-विधियाँ ले चुकी हैं। निर्माण की सामग्री भी अब आधुनिकतम आविष्कारों से पूरी तरह प्रभावित है। पत्थर का प्रयोग अब सजावट तक सीमित रह गया है। लकड़ी का स्थान प्लास्टिक आदि कृत्रिम पदार्थ लेते जा रहे है। सुंदरता
(जैन वास्तु-विद्या