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________________ ग्रन्थों के संस्करणों का परिचय अपेक्षित होने से वह भी दिया गया है। विद्वान् लेखक ने इन सब बातों का सुनियोजित एवं व्यवस्थित ढंग से अनुपालन करते हुए इस संक्षिप्त कृति को संवारा संजोया है। तथा गहन अध्ययनपूर्वक तथ्यों को सरल भाषा-शैली में प्रस्तुत किया है। सम्पादन करते समय इन आधार बिन्दुओ का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते हुये यह विशेषरूप से ध्यान रखा है कि हिन्दी भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाओं (उर्दू, अंग्रेजी आदि) की शब्दावलि से यथासंभव बचा जाये ताकि यह कृति विभिन्न भाषाओं की शब्दावलि का जमावड़ा नहीं लगे। अन्य भाषाओं के शब्दों को या तो () कोष्ठक में स्पष्टीकरण हेतु दिया गया है, अथवा फिर उनके लिए हिन्दी में गठित शब्द अप्रसिद्ध या कठिन होने की स्थिति में अर्थावबोध की सुगमता के लिये अन्य भाषाओं के लोकजीवन में अतिप्रचलित शब्दों को बने रहने दिया गया है। जहाँ सरल-सुगम हिन्दी शब्द उपलब्ध हुये, वहाँ अन्य भाषाओं के शब्दों का हिन्दीरूप प्रस्तुत किया गया है। तथापि यह बारीकी से ध्यान रखा है कि मूल लेखक की भाषा-शैली का प्रवाह (फ्लो ) भंग न हो तथा कृत्रिमता न लगे । अस्तु, फिर भी अनेकविध स्खलन संभव हैं, जिन्हें विद्वज्जन क्षमा करेंगे तथा मुझे उनसे अवगत कराने की कृपा करेंगे, ताकि आगामी संस्करणों मे उनकी पुनरावृत्ति न हो । इस कार्य के लिये मूल प्रेरणास्रोत अहर्निश ज्ञानाराधना में निरत ज्ञानयोगी आचार्यश्री विद्यानंद जी का प्रेरक व्यक्तित्व ही रहा है। उन्हीं की प्रेरणा एवं व्यापक दृष्टि का सहारा लेकर मैं संपादन कार्य में प्रवृत्त हुआ हूँ । मैं अपनी ओर से यथासंभव सावधानीपूर्वक इस पुस्तक को पाठकों के लिए प्रस्तुत करने तत्पर हुआ हूँ, आशा है उनका स्नेह एवं मार्गदर्शन सदैव की भाँति उदारतापूर्वक उपलब्ध रहेगा । -डॉ० सुदीप जैन जैन वास्तु-विद्या VI
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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