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स्थिर होगी और ज्ञान में गभीरता आएगी, जिससे पंडितजी या प्रतिष्ठाचार्य का लाभ अधिक-से-अधिक लिया जा सकेगा। __वास्तु-विद्या के विद्वान डॉ. राजाराम जैन, पं. बाहुबली पार्श्वनाथ उपाध्ये, पं. जयकुमार शास्त्री, तथा जिज्ञासु श्री रमेशचन्द जैन (पी.एस.जे.) और श्री सुरेशचन्द्र जैन (मत्री, कुन्दकुन्द भारती) के प्रोत्साहन से यह पुस्तक लिखी जा सकी, उनका कृतज्ञ हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का भी कृतज्ञ हूँ, सभी छायाचित्रों के प्रकाशन की अनुमति के लिए। कलाकार, लेजर टाइपसैटर और मुद्रक का आभारी हूँ।
आशीर्वचन के लिए वयोवृद्ध संहितासूरि पं. नाथूलाल जी शास्त्री, इन्दौर को सप्रणाम धन्यवाद । सारगर्भित प्रस्तावना एवं सूक्ष्म निरीक्षणपूर्वक आधुनिक वैज्ञानिक विधि के सम्पादन-कार्य के लिए डॉ० सुदीप जैन का हृदय से आभारी हूँ प्रकाशक सस्थान कुन्दकुन्द भारती के अध्यक्ष, मत्री और न्यासि-मंडल का भी सधन्यवाद आभार मानता हूँ।
1.5.1096
गोपीलाल अमर
जन बास्तु-विया)