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________________ उद्धरण और संदर्भ 1. 'वस निवासे' नामक परस्मैपदी धातु, पाणिनि व्याकरण के अनुसार प्रथम गण, भ्वादि, में (सिद्धान्त कौमुदी, 1074वाँ स्थान) परिगणित है 2. क्षेत्र-वास्तु-हिरण्य-सुवर्ण-धन-धान्य-दासी-दास-कुप्य-प्रमाणातिक्रमाः । (-तत्वार्थ-सूत्र, अध्याय 7, सूत्र 291) 3. श्यामसुंदरदास, हिंदी-शब्दसागर (चौथा भाग), पृ. 3722, वाराणसी (काशी नागरी-प्रचारिणी सभा.) 19281 4. विश्वकर्मा जगज-ज्येष्ठो विश्वमूतिर्-जिनेश्वरः, विश्वदृग विश्व-भूतेशो विश्व-ज्योतिरनीश्वरः। (-वही, 25, 103 1) 5. विधाता विश्वकर्मा च स्रष्टा चेत्यादि-नाममिः, प्रजास्त व्याहरन्ति स्म जगता पतिमच्युतम्। (-आचार्य जिनसेन, आदि-पुराण, 16, 2671) 6. ब्रह्मा देवानां प्रथमः सबभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता, स ब्रह्म-विद्यां प्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठ-पुत्राय प्राहम् । (मुण्डकोपनिषद) 7. असिर्मसी कृषिर्विद्या वाणिज्यं शिल्पमेव च। कर्माणीमानि वोढा स्युः प्रजा-जीवन-हेतवः ।। (-आचार्य जिनसेन, महापुराण आदि-पुराण,16/1791) 8. (-गोपीलाल अमर का लेख ऋषभ-पुत्री ब्राह्मी और ब्रह्म-पुत्री सरस्वती', महावीर जयन्ती स्मारिका, जयपुर।)
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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