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________________ ( २७७ ) प्रश्न १२४-श्री अमतचन्द्राचार्य ने सभ्यग्दर्शन की प्राप्ति का उपाय क्या बताया है ? उत्तर--(१) जीव को अनादिकाल से अपने स्वरूप की भ्रमणा है। इसलिए प्रथम आत्मज्ञानी पुरुप से आत्मा का स्वरूप सुनकर युक्ति द्वारा आत्मा ज्ञानस्वभावी है-ऐसा निर्णय करना। (२) फिर पर पदार्थ की प्रसिद्धि के कारण जो इन्द्रिय तथा मन द्वारा प्रवर्तित बुद्धि को मर्यादा मे लाकर अर्थात् पर पदार्थो की ओर से लक्ष्य हटाकर स्वसन्मुख लक्ष करना । (३) पश्चात् “आत्मा का स्वरूप ऐसा ही है, अन्यथा नहीं" ऐसा निर्णय हुआ। (४) निर्णय किये हुए आत्मा के बोध को दृढतारूप से धारण करना यह सम्यक् मतिज्ञान हुआ। (५) तत्पश्चात अनेक प्रकार के नय पक्षो का आलम्बन करने वाले विकल्पो से आकुलता उत्पन्न करने वाली श्रुतज्ञान की बुद्धि को भी गौणकर उसे भी आत्माभिमुख करता हुआ विकल्पो को पारकर स्वानुभव दशा प्राप्त करता है। [समयसार गाथा १४४ के आधार से 1 प्रश्न १२५-ज्ञानी के पास जाकर क्या करे, तो कल्याण का अवकाश है ? उत्तर-जैसे-एक गरीब आदमी था। उसके चार लडके थे। उस आदमी ने ४ काँच के टुकडे लाकर जमीन मे दाब दिये और अपने लडको को बुलाकर कहा-बेटा, मेरे मरने के बाद जब तुम भूसे मरने लगो तव तुम ऐसा करना~मैंने ४ हीरे जमीन मे दाब दिये है। उनमे से एक हीरा निकालकर धन्नालाल सेठ के पास जाना। वह तुम्हे ठीक पैसे दे देगा, उससे अपना गुजारा चलाना। पिता तो मर गया - खाने को रहा नहीं। तब उन्होने जमीन खोदकर हीरो को निकाला और एक हीरे को लेकर धन्नालाल सेठ के पास गये। धन्नालाल समझ गया। उसने कहा, यह होरा बहुत कीमती है, इसका ग्राहक इस समय नही है। तुम इस होरे को इस
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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