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________________ AAAA प्रक्षुण्ण परंपरा वि०सं० की अठारहवीं शताब्दी तक उपलब्ध होती है । प्रस्तुत फाग के पास वर्णन का एक पद्य इस प्रकार है "सीयल कोमल सुरहि वाय जिम जिम वायंते । माण- मडफ्फर माणणिय तिम तिम नाचते ॥ जिम जिम जलधर मरिय मेह गयणंगणि मिलिया । तिम तिम कामीतणा नयण नीरहि झलहलिया ||" नेमिचन्द्र भडारी, खरतगच्छीय जिनेश्वर सूरि के पिता थे । वि० सं० १२५६ के लगभग 'जिनवल्लभसूरि गुणवर्णन' के नाम से एक स्तुति लिखी थी, जो ऐतिहासिक काव्यसंग्रह में प्रकाशित हो चुकी है । यह स्तुति श्राचार्य - भक्ति का दृष्टांत है । महेन्द्रसूरि के शिष्य श्री धर्मसूरि ने वि० सं० १२६६ में जम्बूस्वामीचरित और स्थूलभद्ररास की रचना की। दोनों में क्रमशः ५२ एवं ४७ पद्य है । भगवान् महावीर के निर्वाण के उपरान्त केवल तीन केवली हए, जिनमें जम्बूस्वामी अन्तिम थे । स्थूलभद्र के विषय में लिखा ही जा चुका है। शाहरयण (वि० सं० १२७८) ने 'जिनपतिसूरिधवलगीत' लिखा था। यह 'जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह' में छप चुका है। मंत्रीवर वस्तुपाल के धर्माचार्य श्री विजय सेनसूरि ने वि० सं० १२८८ में 'रेवतगिरि रासो' का निर्माण किया था। यह प्राचीन 'गुर्जर काव्य संग्रह' में प्रकाशित हम्रा है। इन सबकी भाषा हिन्दी है । नेमिचन्द्र भंडारी का एक पद्य देखिये :-- "पणर्माव सामि वीर जिगु, गणहर गोयम सामि । सधरम सामिय तुलनि सरगु. जुग प्रधान सिवगामि ॥' "" विक्रम संवत् की चौदहवीं शती में अनेक जैन कवि हुए हैं। उनकी भाषा हिन्दी थी। उनकी कविताओं का मूल स्वर भक्तिपूर्ण था । खरतरगच्छीय जिनपतीसूरि के शिष्य जिनेश्वरसूरि ने वि० सं० १३३१ के लगभग अनेक ऐसी स्तुतियों की रचना की, जो गुरु, आचार्य और जिनेन्द्र की भक्ति से सम्बन्धित थी। जिनेश्वर सूरि के शिष्य श्री श्रभयतिलक ने वि० सं० १३०७ में, महावीर रास का निर्माण किया था, जिसमें केवल दस पद्य हैं । यह रास श्री प्रगरचदजी नाहटा के निजी संग्रह में मौजूद है । लक्ष्मीतिलक का 'शांतिनाथरास' और सोममूर्ति का 'जिनेश्रसूरि संयमश्रीविवाहवर्णनरास' प्रसिद्ध कृतियां है। फफफफफफ ४६ फफफफफ
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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