________________
--
दो गफाएँ हैं, जो वैभारगिरि के उत्तर में एक जैन मन्दिर के नीचे है। सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने वैभारगिरि पर निर्ग्रन्थ साधुओं को देखा था। इनमें से एक गुफा पर अङ्कित शिलालेख से स्पष्ट है कि मुनि वरदेव के समय में वहाँ साधु समाधिमरणपूर्वक निर्वाण प्राप्त करते थे। ' सितनवासल्ल पडुक्कोटा से वायव्यकोण में नवें मील पर अवस्थित है। यहाँ पर पाषाण के टीलों की गहराई में जैन गुफाएं उत्कीरिणत हैं। प्रत्येक की लम्बाई ६-४ फुट है। गुफा का क्षेत्रफल १०० x ५० फुट है। २ समाधि-शिलाएँ वे स्थान हैं, जिन पर बैठ कर मुनियों ने समाधिमररण-पूर्वक मृत्यु को वरण किया था, महा नवमी-मण्डप के लेख ऋ० १२ (६६) में प्राचार्य नयकीर्ति के समाधि-मरण का सम्वाद है, जो सन् ११७६ में हुअा था। 3 ।
___ समाधिमरणपूर्वक मरने वाले साधु के अन्तिम संस्कार-स्थल को 'नसियाँजी' कहते हैं। यह जैन परम्परा का अपना शब्द है, जो अन्य किसी परम्परा में सुनने को नहीं मिलता । प्राकृत 'मिसीहिया' का अपभ्रंश 'निसीहिया हया, और वह कालान्तर में नसिया होकर आजकल नशियों के रूप में व्यवहृत' होने लगा है। सस्कृत मे उसके 'निषीधिका', 'निषिद्धिका' आदि अनेक रूप प्रचलित है । 'बृहत्कल्पसूत्रनियुक्ति' की गाथा ऋ० ५५११-४२ में 'निसीहिया' शब्द का प्रयोग हुअा है, तात्पर्य उस स्थान से है, जहाँ क्षपक साधु का समाधिमरण पूर्वक दाह संस्कार किया जाता है । 'भगवती-पाराधना' की टीका में बतलाया गया है, "जिस स्थान पर समाधिमरण करने वाले क्षपक के शरीर का विसर्जन या अन्तिम संस्कार किया जाता है, उसे निषीधिका कहते है।"
निसीदिया का सबसे पुराना उल्लेख सम्राट् खारवेल के हाथी-गुफा वाले शिलालेख में हुआ है। इस शिलालेख की १४ वी पक्ति में ....... कुमारी पवते अरहते परवीण-ससतेहिकाय-निसीदयाय.........' और १५ वीं पंक्ति में ...
१. प्राचीन जैन स्मारक, पृ० ११ २ मुनि कान्तिसागर खंडहरो का वैभव, पृ० ६५, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ३. डा० हीरालाल जैन, श्रवणवेल्गोलस्मारक, जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग में निबद्ध
पृ० १३ ।
४. यथा निषाधिका पाराघक शरीर-स्थापनास्थानम् ।
-मूलाराधना टीका, गाथा १९६७
FINANT
159)