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भगवान महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न हुमा । उनका समवसरण रचा गया। मंखलि गोशाल पहुंचा। वह समझता था कि एक पुराने जैन साधु होने के नाते उसे ही गणधर बनाया जायगा, किन्तु ऐसा नहीं हुआ । इन्द्रभूति गौतम को गणधर बनाया गया । गोशाल रुष्ट और मन्त्राहत नाग की भाँति श्रावस्ती चला गया। वहां उसने अपने को सर्वज्ञ घोषित किया। सभी प्राजीविक उसे सर्वज्ञ मान उठे। जब महावीर का समवसरण श्रावस्ती पहुँचा, तो अधिकांश प्राजीविक महावीर के साथ हो गये । 'दर्शनसार' में ऐसे ही एक आजीविक शब्दाल-पुत्र का जिक्र पाया है। वह कुम्हार था, भारत का प्रसिद्ध शिल्पी। उसने मिट्टी के बर्तनों से ही तीन करोड़ स्वर्णमुद्रायें कमाई थीं। एक दिन उसने सुना कि पलाशपुर में सर्वज्ञप्रभु प्रायेंगे, तो उसने समझा कि उसके गुरु गोशाल पायेंगे। प्राये महावीर। उनके धर्मोपदेश से वह वास्तविकता को समझ सका। उनके धर्म में दीक्षित हो गया । उसका दुर्द्धर्ष तप प्रसिद्ध है।
कुछ ऐसे जैन साधक थे जिनकी महावीर ने स्वयं प्रशंसा की है। उनमें धन्यकुमार का नाम सर्वोपरि है। वह काकन्दी का श्रेष्ठि-पुत्र था। घोर तप के कारण उसमें हड्डियाँ-भर अवशिष्ट रह गई थीं। मगध नरेश श्रेणिक ने भगवान से, उनके १४ हजार शिष्यों में सर्वश्रेष्ठ साधक पूछा, तो उन्होंने 'धन्ना प्रणागार' का नाम लिया। दूसरा साधक, जिसको प्रशसा भगवान ने की 'कामदेव श्रावक' था । उसका उल्लेख 'दशांगसूत्र' में आया है । वह चम्पा निवासी था। एक बार भगवान का बिहार चम्पा में हुप्रा । कामदेव ने श्रावक की दशा में ही भगवान के द्वारा उपदिष्ट साधना प्रारम्भ की। एक रात्रि को एक देव के द्वारा घोर उपसर्ग पाने पर भी कामदेव विचलित न हुआ। भगवान ने अपने समवसरण में उसकी प्रशंसा करते हुए निर्ग्रन्थ श्रमरणों से उपसर्ग सहन करने का उपदेश दिया। उन्होंने कामदेव श्रावक का उदाहरण उपस्थित किया। तीसरी थी साधिका सुलसा । वह एक गांव में रहकर गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए ही वीतरागी साधना में तल्लीन रहती थी। भगवान ने अम्बड श्रावक के द्वारा उसको धर्म-लाभ कहलवाया था। इससे स्पष्ट है कि भगवान उसके प्रशंसक थे'
___ जीवंधर की गणना प्रसिद्ध जैन साधकों में थी। जीवंधर हेमांगद देश के सम्राट थे। उनकी राजधानी राजपुरी थी। हेमांगद अपनी स्वर्ण की खानों
१. देखिए अगरचन्द नाहटा का लेख महावीर द्वारा प्रशासित तीन व्यक्ति' अहिसावाणी,
अप्रेल १६६६, पृ० १४० ।
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