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केवलज्ञान
महावीर के हृदय में तप की सोई भावना जागृत हुई और उन्होंने वीतरागी दीक्षा धारण कर ली। वीतरागी दीक्षा परम्परा से चली आ रही थी। उसका एक प्रशस्त मार्ग था। महावीर के पूर्व २३ तीर्थकर उसे धारण कर चुके थे। उन्होंने जिस मार्ग को अपनाया, उस पर उनका पूर्ण विश्वास था, श्रद्धा थी। इसलिए उनके कदम मजबूत थे। साधना भी मजबूत हुई। उन्होंने १२ वर्ष की सतत् साधना से ऋजुकूला नदी' के तट पर केवल-ज्ञान प्राप्त किया। इसी को उपनिषदों की भाषा में 'कैवल्यपद' कहते हैं।
केवलज्ञान का अर्थ है सर्वसत्व । बुद्ध ने महावीर के सर्वसत्व को स्वीकार किया था। मज्झिमनिकाय से ऐसा सिद्ध है। सर्वसत्व सदैव महावीर के साथ रहता था। वह आत्मा की पूर्ण विशुद्ध दशा से उत्पन्न हुआ था। दूसरी ओर बोधि की व्याख्या करते हुए मिलिन्दपण्ह में लिखा है, "गौतम की सर्वसत्ता सदैव उनके पास नही रहती थी, अपितु उनके विचार करने पर अवलम्बित थी।"3 कुछ भी हो महावीर के सर्वसत्व और उनकी दिव्यवारणी का बुद्ध की ख्याति पर प्रभाव पड़ा था । बुद्ध के जीवन की ५० वर्ष से ७० वर्ष तक की आयु की घटनामों का उल्लेख नही मिलता । इसका एक मात्र कारण महावीर की वृद्धङ्गत ख्याति थी। यह कथन 'पासादिकसुतन्त' से और भी स्पष्ट हो जाता है। उसमें लिखा है कि बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनन्द को जब पावा के चण्ड के द्वारा महावीर के निर्वाण की सूचना मिली, तो उसने तुरन्त ही इस समाचार को तथागत के समक्ष उपस्थित करने योग्य समझा।
अहिंसा का जैसा समूचापन महावीर को दिव्यवाणी में प्रस्फुटित हुमा, वैसा कहीं देखने को नहीं मिलता। यद्यपि बौद्ध भिक्षु अहिंसा के अनुयायी थे पर वे आगे चल कर मांसाहार को उचित मानने लगे । मासाहारी देशों में बौद्ध धर्म के द्रुतगति से फैलने का कारण भी यह ही था । महावीर ने अहिसा को ही आध्यात्मिक
१. ऋजुकूला नदी का तट, जहाँ भगवान को केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई, प्राजकल बिहार
उड़ीसा के अन्तर्गत माना जाता है। कहा जाता है कि बाराकर नदी ऋजुकूला थी।
खोज की प्रावश्यकता है। २. देखिए चूल दुक्खक्खन्ध-सुत्तन्त ( मज्झिम, १/२/४ ) तथा चूल सुकुलदायिसुत्तन्त
(मज्झिम, २/३/६)। ३. मिलिन्दपण्ह (S. B. E.) भाग ३५ वा, पृ० १५४ ।
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