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वीर सेवा मंदिर कालय
बनरव २०
२. रिगण, देवली
भगवान महावीर और उनके समकालीन जैन साधक
महावीर एक ऐतिहासिक पुरुष थे। उनका महात्मा गौतमबुद्ध से पृथकत्व प्रमाणित हो चुका है । कभी दोनों को एक ही समझ लिया गया था । यह भ्रम पाश्चात्य विद्वानों ने उत्पन्न किया था । निराकरण भी उन्हीं ने किया। सबसे प्रथम जैकोबी और डा० ल्युमान ने जैन आगम सूत्रों के आधार पर सिद्ध किया कि महावीर बुद्ध से पृथक ही नहीं अपितु उनसे कुछ वर्ष बड़े भी थे । डा० ल्युमान ने लिखा कि महावीर की तीर्थङ्कर संज्ञा वैसी ही निराली है, जैसी बुद्ध की
तथागत । "
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फिर भारतीय विद्वानों का प्रयास भी प्रारम्भ हुआ । डा० काशीप्रसाद जायसवाल ने खारवेल का शिलालेख १६ वर्ष में पढ़ा। उसमें लिखा है, " वध - मान से स यो वे (व) नाभि विजयो”, अर्थात् बचपन में खारवेल का सौन्दर्य महावीर जैसा था । खारवेल कलिङ्ग का राजा था और मगध से जिनमूर्ति जीतने के उपरान्त उसने यह शिलालेख उत्कीर्ण करवाया था । इसका समय ईसा से १७० वर्ष पूर्व माना जाता है। इससे भी पूर्व का एक और प्रमाण उपलब्ध हुना है । वह है बडली ( राजस्थान ) से प्राप्त एक शिलालेख । उसमें लिखा है, "विराय् भगवत् ८४ चतुरासिति वस भाये सालिमालिनीयर निविठ
१. बुद्ध अने महावीर, पूना, पृ० १२ ।
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