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विजा सूरि को इस पुस्तकालय के जैन धर्म सम्बन्धी अन्य दिलायें । श्री हीर विजइ सूरि की विद्वत्ता से प्रभावित होकर सम्राट ने उन्हें 'गुरु' की उपाधि से विभूषित किया था।
उपर्युक्त विवेचन से प्रमाणित है कि जैन हिन्दी कवियों की शिक्षा पाठशालानों, मकतबों, मदरसों, सैलियों, भट्टारक सम्प्रदायों, मुनि संघों और व्यक्तिगत गुरुषों के सान्निध्य में हुई थी । अधिकांश जैन कवि विद्वान् थे और सहृदय भी । उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का कुछ ऐसा वातावरण मिला जिससे एक ओर तो वे कर्कश तर्क और दार्शनिक ग्रन्थों का अध्ययन कर सके और दूसरी ओर कविता की सरस प्रस्विनी प्रवाहित करने में भी समर्थ हो सके। प्राध्यात्मिक अनुभूतियों का जैसा भावोन्मेष जैन कवियों के काव्य में दृष्टिगोचर होता है, अन्यत्र नहीं । प्राचार्य कुन्दकुन्द के समयसार नाम के जटिल ग्रन्थ को साहित्यक रूप देना बनारसीदास की कवि सामर्थ्य का द्योतक है । पाण्डे रूपचन्द्र गोम्मटसार जैसे शुष्क ग्रंथ के विशेषज्ञ थे । उन्होंने परमार्थी दोहाशतक, गीत परमार्थी, मंगलगीत, नेमिनाथ रासा, खटोलनागीत आदि रस-विभोर बना देने 'वाले मुक्तक काव्यों का भी निर्माण किया । यशोविजय और विनय विजय ने प्राकृत और संस्कृत में प्रताधिक सैद्धान्तिक ग्रन्थों की रचना की । वे दोनों मुजराती और हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि भी माने जाते हैं । सरस्वती गच्छ बलात्कारगरण की परम्परा में होने वाले भट्टारक सकलकीर्ति, ज्ञानभूषण और शुभचन्द्र आदि की विद्वत्ता और माध्यात्मिक कविता दोनों ही में समान गति थी।
परम्पराअों ने वातावरण बनाया था और वातावरण विद्वान् और कवि दोनों को एक साथ जन्म देने में समर्थ हो सका।
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