________________
RANCrer
Cilin
सूरदास के काव्यों का मूल आधार श्रीमद्भागवत के होने से उनके वर्णन में मधुरतापरक रूप को ही प्रधानता है । उनके समूचे साहित्य में दो-एक स्थलों को छोड़कर कहीं भी बालक के उदात्ततापरक रूप के दर्शन नही होते । सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जैन कवि ब्रह्म रायमल्ल ने 'हनुवंतचरित्र' का निर्माण किया था. उसमें बालक हनुमान् का प्रोजस्वी वर्णन है । इसके अतिरिक्त सूरदास का जितना ध्यान बालक कृष्ण पर जमा, बालिका राधिका पर नहीं। बालिकाओं का मनोवैज्ञानिक वर्णन सीता और अंजना के रूप में जैन भक्ति काव्यों में उपलब्ध होता है। रायचन्द के 'सीता-चरित्र' में बालिका सीता की विविध चेष्टानों का सरस चित्र खींचा गया है । 'अजनासुन्दरीरास' में अंजना का बालवर्णन भी हृदयग्राही है।
गोस्वामी तुलसीदास की रचनामों में 'रामचरितमानस' और 'विनयपत्रिका' अत्यधिक प्रसिद्ध हैं । यद्यपि प० राहुल सांकृत्यायन ने जैन कवि स्वयम्भू के 'पउमचरिउ' का 'रामचरितमानस' पर प्रभाव स्वीकार किया है, तथापि अभी तक दोनों का पूर्ण रूप से तुलनात्मक विवेचन किसी ने नही उपस्थित किया है । यह सच है कि 'रामचरितमानस' की लोकप्रियता को 'पउमचरिउ' नहीं पा सका है। इसका बहुत बड़ा कारण ‘पउमचरिउ' का जैन शास्त्रों पर प्राधृत होना ही है। वैसे प्रबन्ध-सौष्ठव और काव्यत्व की दृष्टि से 'पउमचरिउ' एक उत्तम काव्य है। इसमें उस भावूकता को भी कमी नही है, जो कल्पना के बल पर कथानक की प्रमुख घटनाओं को अनुभूत कराने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त रायचन्द का सीताचरित्र, लब्धोदय का पद्मिनीचरित्र और भूधरदास का पार्श्वपुराग प्रबंध काव्य होते हुए भी रामचरितमानस की समता नही कर सकते। उनमें उस तन्मयता का अभाव है, जिसने मानस के रचयिता को अमर बना दिया है। फिर भी भाव, शैली, भाषा, अलकार,छद और रस-विवेचन की दृष्टि से जैन महाकाव्यो का अध्ययन करने पर, हिन्दी के भक्ति-काव्य में अनेक नये अध्याय जोड़ने होगे। छोटे-छोटे भव-वर्णनो के समावेश से जैन महाकाव्यों का कथानक एक क्षण के लिए भी जड़ता को प्राप्त नहीं कर पाता । उसमें निरन्तर एक ऐसी गतिशीलता और नवीनता रहती है, जो रस-सिक्तता का मूल कारण है । इन पूर्व भव-वर्णनों को 'अवातरकथाओं' की संज्ञा दी जा सकती है । पंडित रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार अवातर कथाए ‘महाकाव्य' में रस की पिचकारियों का काम करती है । इन कथाओं में जितनी हो मूल कथाओं के साथ तादात्म्य होने की शक्ति होगी, उतनी ही उनमें रस उत्पन्न करने की ताकत पायेगी । जैन महाकाव्यों के रचयिता पूर्व भव-वर्णन-रूप अवातर कथा को मूल कथा के साथ