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नहीं । एक स्थान पर पांडे रूपचन्दजी ने चेतन को सम्बोधित करते हुए लिखा है -- "हे चेतन । मुझे प्राश्चर्य है कि सतगुरु अपने हितकारी अमृत-वचनों से चित्त देकर तुम्हें पढ़ाता है और तुम भी ज्ञानी हो, फिर भी, न जानें क्यों चेतन तत्वकहानी तुम्हारी समझ में नहीं प्राती ।”
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चेतन अचरज भारी, यह मेरे जिय आवे । अमृत वचन हितकारी, सतगुरु तुमहिं पढ़ावै ।
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सतगुरु तुमहि पढ़ावै चित दे, और तुमहुँ हो ज्ञानी । तबहुँ तुमहि न क्यों हूँ श्रावै, चेतन तत्व कहानी || "
इसीको कबीर ने इस प्रकार कहा है-सतगुरु बपुरा क्या करे, जो सिषही माहे चूक । भाव त्यू प्रमोधि ले, ज्यू बंसि बजाई फूँकि ॥ २
इससे स्पष्ट है कि 'तत्रहूँ तुमहिं न क्यों हूँ श्रावै, चेतन तत्व कहानी' के प्रश्न वाचकत्व में जो सौंदर्य है, 'बंसि बजाई फूं कि में नहीं है ।
यदि श्रात्मा और परमात्मा के मिलन की भावात्मक अभिव्यक्ति ही रहस्यवाद है, तो वह उपनिषदों से भी पूर्व जैन - परम्परा में उपलब्ध होती है । यजुर्वेद में जैन तीर्थकर ऋषभदेव और अजितनाथ को गूढ़वादी कहा गया है। महामना रानाडे ने अपनी पुस्तक 'Mysticism in Maharashtra, में ऋषभदेव को गूढ़वादी कहा है । डा० ए० एन० उपाध्ये ने भी 'परमात्मप्रकाश योगसार' की भूमिका में जैन तीर्थकरो को गूढ़वादी कहा है । कर्मों के मल से विकृत हुई श्रात्मा को जीवात्मा कहते हैं । जीवात्मा चौदह गुण-स्थानों पर चढ़ते चढ़ते शुद्ध रूप को प्राप्त कर लेती है । आत्मा और परमात्मा के मिलन की यही कहानी है । प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के अनेकानेक जैन ग्रन्थों को रहस्यवादी
१. पाण्डे रूपचन्द, परमार्थ जकड़ी, परमार्थ जकड़ी-संग्रह, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, जनवरी १९११ ई०, पहला पद्य, पृ० १ ।
२. कबीरदास, गुरुदेव को अग, २१ वी साखी, कबीर ग्रन्थावली पृ० ३ ।
३. यजुर्वेद, २० - २६ ।
४. R. D. Ranade, 'Mysticism in Maharashtra', पृ० १ । ५. परमात्मप्रकाश - योगसार की भूमिका, डॉ० ए० एन० उपाध्ये- लिखित, पृ० ३६ ।
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