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जैन परिप्रेक्ष्य में मध्य युगीन हिन्दी काव्य
मध्यकालीन हिन्दी का प्रारम्भ सत काव्य से होता है । उस पर नाथ और सूफी सम्प्रदायों का प्रभाव माना जाता है, किन्तु इस युग का जैन संत-काव्य अपनी पूर्व परम्परा से अनुप्राणित है । जैन अपभ्रंश में वे सभी मूल बीज प्रस्तुत थे, जो हिन्दी के मंत काव्य में परिलक्षित होते हैं । यह आश्चर्य की बात है कि कबीर और जायसी के साहित्य की प्रवृत्तियों जैन अपभ्रंश से मिलती है । डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि नाथ-सम्प्रदाय में उस समय प्रचलित १२ सम्प्रदाय अन्तर्भूक्त किये गये थे। उनमें 'नेमि' और 'पारस'-सम्प्रदाय भी थे। नवीन खोजों से सिद्ध है कि नेमि-सम्प्रदाय एक शक्ति सम्पन्न सम्प्रदाय था। यह सौराष्ट्र में तो प्रचलित था ही, दक्षिरणी और उत्तरी भारत तक में भी विस्तृत था। यह २१ वें तीर्थङ्कर नेमीश्वर के नाम पर विख्यात हया था । नेमीश्वर कृष्ण के छोटे भाई थे।
पारस-सम्प्रदाय ईसा से ८०० वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित सम्प्रदाय था। यह २३ वें तीर्थकर पार्श्वनाथ से सम्बद्ध था। भगवान् महावीर के माता-पिता इसी सम्प्रदाय के अनुयायी थे । प्रागम-साहित्य से सिद्ध है कि दीक्षा लेने के उपरान्त
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