________________
बूद दरिया में समा जाती है। मैं अपनापा खोकर पी से मिलूगो, जैसे प्रोला गलकर पानी हो जाता है। और जब पति उसे मिला, तब रमस आलिंगन कौन कहे, एकमेक हुए बिना चैन न पड़ा। उन दोनों के 'एकमेक' को लेकर बनारसी दास ने लिखा-वह करतूति है और प्रिय कर्ता । "वह सुखसींव है और प्रिय सुखसागर । वह शिव नीव है और प्रिय शिव मन्दिर । वह सरस्वती है और प्रिय ब्रह्मा । वह कमला है और पिय माधव । वह भवानी है और पिय शंकर । वह जिनवाणी है और पति 'जिनेन्द्र ।२ 'भैया' का पति कहीं भटक गया है, तो वह दुलारते हुए कहते है-'हे लाल । तुम किसके साथ लगे फिरते हो तुम अपने महल में क्यों नहीं आते, वहां दया, क्षमा, समता और शांति जैसी सुन्दर रमणियां तुम्हारी सेवा में खड़ी हुई हैं । एक-से-एक अनुपम रूपवाली हैं।"3 दुलारना सफल हुआ, पिय घर वापस आगया, तो सुमति का ठिकाना न रहा । वह पिय के साथ परमानन्द की अनुभूति में डूब गई । महात्मा मानन्दघन की सुहागिन नारी के पति भी लम्बी प्रतीक्षा के बाद स्वयं आगये हैं । उसकी
१. होहुँ मगन मै दरसन पाय, ज्यो दरिया में बूद समाय । पिय को मिलों अपनपो खोय, प्रोला गल पाणी ज्यों होय ॥
-देखिए वही, ६ वां पद्य पृ० १६० । २. पिय मों करता में करतूति,
पिय ज्ञानी मै ज्ञान विभूति । पिय सुखसागर मैं सुखसीव,
पिय शिवमन्दिर में शिव नीव । पिय ब्रह्मा मै सरस्वती नाम,
पिय माधव मो कमला नाम । पिय शकर मै देवि भवानि, पिय जिनवर मै केवल बानि ।।
-देखिये वही, पृ० १६१ ३. कहां कहां कौन सग लागे ही फिरत लाल,
प्रावो क्यों न प्राज तुम ज्ञान के महल मे। नकह विलोकि देखो अन्तर सुदृष्टि सेती, कैसी-कैसी नीकी नारी ठाडी हैं टहल मे एक ते एक बनी सुन्दर सुरूप धनी, उपमा न जाय गनी वाम की चहल में ।
-मैया भगवतीदास : शतप्रष्टोतरी, २७ वां पद्य, ब्रह्मविलास पृ० १४ ।
5*55555555555555