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के सूचक हैं। लेख में इसके प्रियतमय देवराज का उल्लेख है जो कि युबराज था । वह त्रिपर्वत का शासक था तथा जिनधर्म का भक्त था । उसने श्रर्हन्त भगवान् के चैत्यालय की पूजा मरम्मत आदि के लिए यापनीय संघों के लिए कुछ खेत दान में दिये थे ।
गंग वंश के कई लेखों में अविनीत महाधिराज को कदम्ब कुल के कृष्ण वर्मा का प्रिय भागिनेय माना जाता है। कदम्ब नरेशों में कृष्णवर्मा दो हो गये हैं । अि 1 नीत का मामा कौन कृष्णवर्मा था इसमें इतिहास एक मत नहीं है। फिर भी समकालीन राजवंशों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह प्रतीत होता है उसे कृष्ण वर्मा प्रथम होना चाहिए' । कृष्णवर्मा प्रथम श्रविनीत का समकालीन भी था । ३. चालुक्य वंशः -- प्रस्तुत संग्रह में इस वंश से सम्बन्धित अनेकों लेख संगृहीत हैं जिनसे मालुम होता है कि ये मानव्य गोत्र तथा हारीति के वंशज थे, वराह इनका लांछन था । इस वंश के राजाओं की साधारणतः वल्लभ एवं सत्याश्रय उपाधियाँ थीं। इस वंश की एक शाखा जिसे पश्चिमी चालुक्य कहा जाता है वातापी ( बादामी ) नामक स्थान से ६ वीं ईस्वी शासन करती रही और पीछे दो शताब्दी बाद १०वीं से नामक स्थान से । इसी तरह दूसरी एक शाखा पूर्वी चालुक्य atri देश के वेंगी नामक स्थान से ७ शताब्दी तक सत्तारूढ रही । इस तरह इस वंश ने पर शासन किया ।
से ८ वीं ईस्वी तक १२वीं तक कल्याणी
के नाम से विख्यात
वीं शताब्दी से ११-१२ वीं दक्षिण भारत
के बहु भाग
वंश का
सबसे प्राचीन
ड़ते से मिला है ।
(क) पश्चिमी चालुक्य:- जैन लेखों में इस दानपत्र ( १०६ ) शक सं० ४११ ( ई० ४८९ ) का यह ले० सत्याश्रय पुलकेशि का था । तदनुसार उस राजा ने चोल, चेर, केरल, सिंहल और कलिङ्ग के राजाओं को कर देने वाला बना दिया था एवं पाण्डय
१. प्रो० ज्योतिप्रसाद, 'गंग नरेश दुर्विनीत का समय', जैन एण्टीक्वेरी, भाग १२, अंक २, पृष्ठ १-११