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________________ शत्रुसबके लेख ५. १. संवत् १६८६ वर्षे वैशाख सुदि ५ बुधे शके १५५१ प्रवर्त्तमाने भी ___ मूबसले सरस्वतीगच्छे २. बलात्का) रगणे श्री कुंडकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री सकलाकोति देवास्तपट्टे म० भी भुवनकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० भी तानभूषणदेवा३. स्तत्प? भ० श्री विजयकोचिंदेवास्तपट्टे भ० श्री शुभचन्द्रदेवात्तपट्टे भ० श्री सुमतिकोचिंदेवास्तत्पटे भ० श्री गुणकोचिदेवास्तत्पटटे भ० श्री वादिभूषणदेवास्तत्पटे भ० श्री रामकोतिदेवास्तपट्टे भ० श्री पानन्दिगुरूपदेशात् पातसाहाश्रीशाहा४. ज्याहां विजयराज्ये श्री गुर्जर देशे श्री ब्रह्मदावादवास्तव्यहुँबड़-शातीयवृहछा खीयवाग्वरदेशस्थांतरीयनगरनौतनभद्रप्रासादोद्धरणधार बाडा सं० भोजा भा० सं० लकु सु० संवस्ता भा० सं० लटकण भा० सं० ललतादे तयोः ५. सुत निजकुलकमलविकाशनैकसूर्यावतारः दानगुणेन नृपतिश्रेयांससमः श्री जिनबिबप्रति६. ष्ठातीर्थयात्रादिधर्मकर्मकरणोत्सुकचित्तसंघपति श्रीरत्नसी भा० सं० रूपादे द्वितीय भा० सं० मोहणदे तृतीय भा० सं० नं [2] रंगदे द्वितीयसुत संघवी श्रीरामजी भा० सं० केशरदे तयोः सुत संघवो ७. डुगरसो भार्या सं० डाडमदे द्वितीयसुत संघवो [रायव] जी भा० सं० गमतादे [एते सर्वे ] महासिद्धयोत्र श्री श [बुजयनाम्नि ] गिरी श्री जिनप्रासादे श्री शान्तिनाथबिंब कारयित्वा नित्यं प्रणमति । शुभं भवतु [1] [ भावार्थ-यह अभिलेख अहमदाबाद निवासी हुँबड ( हूभड़) बातिके किन्हीं सद्गृहस्थोंने, जिनके नाम इस अभिलेखमें दिये हुए हैं, खुदवाया है । इसमें उनके द्वारा इस शत्रुक्षय पर्वतपर श्री शान्तिनाथकी प्रतिमाके स्थापनकी खास बात है । यह बिंब प्रतिष्ठा संवत् १६८६, वैशाख सुदि ५, बुधवार, तथा शक सं० १५५१ के समय हुई थी। आम्नाय तथा भट्टारकोंकी परम्परा इस तरह चालु थी:
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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