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जैन-शिलालेख संग्रह
भाई भैरवेन्द्र था । राबा साल्व-मल्लकी प्रशंसा । राजा भैरवकी मेरु-पर्वतसे उपमा देते हुए उसकी प्रशंसा ।
जिस समय देवराय, इस तरह अनेकोंकी भक्तिके साथ तुळु, कोकण, हैवे तथा दूसरे देशोपर राज्य कर रहा थाः --
उस नगरमें, राजा देवसे रक्षित, महाप्रसिद्ध, राजश्रेष्ठी अम्ब्वण-श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्ना (प्रशंसा सहित ) देवरसि थी। उनकी वंश परम्पराका वर्णन:राजाधिराज, बनवसि-पुरका मुख्य अधीश, कोंकण और हैव राज्यका मुख्य अधीश. चन्दाउर कदम्ब-कुल-तिलक कामिदेव-महाराज थे। उसके दण्डाधिनाथ कामेयटण्णायकका पुत्र रामण-हेगडे और रामक ८ पुत्र उत्पन्न हुए थे, जिनमें सबसे प्रसिद्ध योजण-श्रेष्ठी या, जिसका दो स्त्रिये तङ्गण और रामक थीं। पहिलीके रामण-श्रेष्ठी तथा दूसरीके कल्प-सेट्टि हुआ । इन अपनी प्रिय दो भार्याओं सहित योजण समृद्ध हुआ। इस योजण श्रेष्ठो क्षेमपुरमें अनन्तनाथ चैत्यालय बनवाकर तथा इसके अतिरिक्त और भी अगणित पुण्य प्राप्त करके अपना राज-श्रेष्ठिका पद अपने पुत्रोंको सौंपकर स्वर्गलोकको चला गया। दूसरी तरफ, रामण-सेटिका पुत्र तम्मन था, जिसका पुत्र नागप हुआ। उसके दो पत्नियाँ थीं, सातम और नागम । सातमसे हटिगमें तोटियण्ण-सेट्टि नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके बाद नागमका अवतार ( उत्पत्ति ) कैसे हुआ, यह बताया है। नागम और नागप्पसेटिसे दो लड़के उत्पन्न हुए थे, अम्ब्वण-अष्टिके मल्लम और देवसि नामकी दो पत्नियां थी। इसके बाद देवरसिकी उत्पत्तिका वर्णन है ।
जब ये दोनों अम्ब्वण-श्रेष्ठी और देवरसि पूर्ण शान्ति और सुखसे रह रहे थे, एक दिन वे नेमि-निन चैत्यालयमें आये, और नेमि-तीत्र्थेश्वरकी ( उद्धृत ) स्तुतिको दुहराते हुए मुनिगणका सम्मान किया। इसके बाद, अभिनव-समन्तभद्रमुनिसे धर्म सुनकर और इसे हृदयमें धारण कर गुरूको सूचित किया कि वे अपने पितामह योजन-ष्ठिके द्वारा बनवाये गये नेमीश्वर चैत्यालयके सामने मानस्तम्भ बनवायेंगे । इसके बाद घर जाकर, अपने भाई कोरण-सेट्टि और मल्लि-सेट्टि और