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________________ हिरे-आवलिके लेख ४३६ [चिन शासनकी प्रशंसा । ( उक्त मितिको, सोरब महाप्रभुकी अर्धाङ्गिनी मेचक चिन पदोंके पास गयी । उसकी प्रशंसामें श्लोक, जिनमें कहा गया है कि कि मठारह कम्पणमें उद्धरके बयिचि-राजकी पुत्री थी। १८-कम्पणमें पहिला कम्पण एडेनाड् था, जो कि बलवान् नगर चन्द्रगुत्ति पर आश्रित था।] [ Ec, VIII, Sorab tl., No 51.] ६०४ हिरे-आवलि,-संस्कृत तथा कचर। [शक १३२६=१४०७ ई.] [हिरे-आवलिमें, सात वें पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ॥ स्वस्ति समस्त-भुवताश्रयं श्री-पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराज भुजबल-प्रताप चक्रेश्वर श्री-वीर-हरिहर-रायन कुमार देव-रायरु पृथ्वी-राज्यं गेवुत्तमिर्प-कालदन्ति शक-वर्ष १३२६ सर्वधारि-संवत्सरवलु जिड्डुळिगेय नाडिङ्गे मुख्यवाद हिरि-आवलिय ग्रामल्लि श्रीमन्नाळ्य-महाप्रभु राम-गौण्डन सुपुत्र हारुवगौण्ड स्वर्ग-प्राप्ति आद ॥ वृ ॥ परम-श्री-जिन-राज देव मुनिपं वैराग्य-सम्पत्तिन्द । ... द श्री-मुनिभद्र-देव मुनियोळ् कैकोण्डुमिपीसेयुम् । बरेयुं बल्लमेयेन्दु वीरतनदिन्दाश्विन-भानुदिनम् । वर-मु ." त्याङ्गनेगक्कु हारुव-गौण्ड-प्रभु धर्मस्थ-कीर्ति ॥ अण्ण गोपण्णन तम्मनु । पुण्यद कणि धर्म-चिच सम्बारित्रम् ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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