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हिरे-आवलिके लेख
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(उक्त मितिको ), 'सन्यसन' की विधिपूर्वक, प्राणोत्सर्ग करके शाश्वत सुखका आनन्द लिया । उनका स्मारक उनके शिष्य वा (पा) रिससेन-देवके द्वारा खड़ा किया गया था। बिनशासनका कल्याण हो।] [ EC, VIII, Sorab tl., No. 146]
५८१ हिरे आवलि;-काद। [सक ३111 ई.]
[ हिरे-आपलिमें, १६ पाषाण पर] श्रीमद्-राय-रावधानि-हस्तिनापुर-विजयानगरि-मुक्षवाद । समस्त-पट्टणाधीश्वर । अश्वपति-गनपति-नरपति अरि-राय-तुरुस्क क)-विभाड। हिन्दूराय-सुरत्राण । भाषेगे-तप्पुव-रायर गण्ड । समस्त-भुवनाश्रय पृथ्वी-वल्लभ । महाराजाधिराजम् । श्री-वीर-बुक्करायन कुमार हरिहर-राय राज्यं गेय्युत्तमिप्प कालदलि महा-प्रधानि मन्त्रि-शिरोमणि मादरस वोडेयर काला स्वस्ति यम-नियमस्वाध्याय-ध्यान-मौनानुष्ठान-जप-तप-समाधि-शील-गुण-सम्पन्नरप्प श्री-मुनिभद्रस्वामिगळ गुड। आहागभय-शास्त्र-दान-विनोदनुं । रत्नत्रयाराधकनुं । जिनमाग-प्र-व-करनुमप जिड्डुलिगेय-नाडिङ्गे मुख्यवाद हिरियालय पुराधीश्वरनप्प भामना-महा-प्रभु काम-गोण्डन सुत्र कुल-दीपकनप्प । हिरियचन्दप्पन शक-वर्ष १३११ शुक्र-संवत्सरद कात्तिक-बहुल-रजनो-कुजवार-चतुशि- शुभ-दिनदलु सन्यसन-समाधि-विधियिं मुडिहि स्वर्ग-प्राप्तनाद ॥ क ।। कात्तिक-बहुळ-चतुर्दशि ।
कात्तिय मुनिभद्र-यतिय प्रियद गुड्डम् । मूत्तिय देहव तोरदन-। मूर्त्तद देवरने नेनेदु कीर्त्तिय पडेदम् ।। वोडने हुटिदरनेजर