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जैन-शिलालेख संग्रह सिरिया-गौडन सुपुत्र मल-गौडनु सन्यासन-समाषियिं मुरिपि स्वास्तनादनु आतन अहिपेवकनु सहगमनदि स्वास्तेयादळु । मंगळ मा (महा) भी भी
[अपरके उल्लेखोंके समान ही, महामण्डलेश्वर, शत्रु गवाओंका नाशक, हिन्दुव राधाओंका मुस्ताल, हरियप्प-वोडेयरके राज्यमें, स्वर्गगत मालगौड तथा उसकी मार्या चेन्नके, बिसने 'सहागमन' करके स्वर्ग प्रास किया, के लिये भी उल्लेख है।]
[ EC, VIII, Sorabtl.. No. 104 ]
५६० मलेयूर,-संस्कृत तथा कार।
[शक सं० ११०-१५५ ई.] [स्सी पहावीपर, बड़े गोड पत्थरके पूर्वको बोर] स्वस्ति समस्त-प्रशस्ति-सहितं श्री मूलसंघ देशिय-गण कोण्ड-कुन्दान्वय पुस्तक-गच्च हनसोगेय बळिय श्रीमद्-राय-राजगुरु-मण्डलाचार्य-समयाचरणरुमप्प हेमचन्द्र-महारकर शिष्यरु तेलुग आदि-देवरु ललितकीर्तिमहारकर शिष्यरु ललितकीति भट्टारकर शक परुष १२७७ मन्मयसंवत्सरद चैत्र-बहुळ १४ गुरुवारदल्नु तम्म निषिधि-निमित्वागि कनकगिरियल्तु माडिसिद विजय देवर प्रतिमेगे अवर मुख्यवाद आचार्य ओलगर मङ्गलमहा श्री श्री श्री
[भी-मूलसंघ, रेशियगण, कोण्डकुन्दान्वय, पुस्तकगच्छ तघा इनसोगे-बळिके हेमचन्द्र-मटारकके शिष्य तेलुग आदि-देव और लालसकीर्ति भटारकके शिष्य ललितकी िमट्टारकने अपनी निषिधिके निमित्तसे कनक-गिरिपर विजय देवकी प्रतिमा बनवायी।
( EC, IV, Chamarajnagar t1, No. 158 ]