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जैन - शिलालेख संग्रह
४९८
श्रवणबेलगोला, संस्कृत तथा भग्न ।
[ बिना का
निर्देशका ]
[ जै० शि० ॐ०, प्र० भा० ]
४६९
इलेबोड; - संस्कृत और क
[ शक ११७७ == १२५५ ई० ]
इलेमी से कमी हुई पत्तिहलिमे, पार्श्वनाथ बस्विके बाहर की दीवाल के पाषाणके एक ओर ]
श्रीमत् - सम्पक्त्व - चूडामणि सत-नृपना - वंश - सिंहासनस्थम् । सोमेशं नित्यनप्पन्तोसेदु विजय-तीर्थाधिनाथङ्ग नाकुम् । सीमा-संस्थानदोळ् मुक्कोडे यसेविनेगं नट्ट्टु धर्म्मक्के कोट्टम् । . भूमीत्वके तान्दरिपुव तेरदि तत्सुतं भारसिंहम् ॥
शुकवर्ष ११७७ नेय मानन्द- संवत्सरद मार्गशिर-ब १ बृचन्दु श्रीमत् प्रताप-चक्रवर्त्ति होयसळ-श्री-वीर- मारलिंग- देवरस० बोप्प-देव-दण्णायकर बसदिगे विजयं गेय्दु श्री विजय पार्श्व-देवरिगे काणिकेयनिक्कि आ-नसदिय मुण्डण शासन व कण्डु तम्मन्वय राजावळियनो दिसि - गोडुत्तविद्दवसरदोळु आ-शासनस्थवह देव-दानद क्षेत्रदोळगे मय्दुनं पद्मि-देवरु बट्टाख कट्टि मनेय माडि आ बठारलु हलवु वस्सदिन्दषु हालागि विद्दुदनु केळि तग्म अन्वयद धम्मँवोप्पु कारणवागियु श्रीमतु प्रताप - चक्रवत्ति - होयसळ - श्री-वीर-सोमेश्वर-देवरसर राज्याभ्युदयत्रहन्ताभियुः पूर्व्व देसे पनि देवन बठारवनु बी
नट्ट कलिन्दोळगणभूमिसहित मयिदुन'मनेयमाडि आ-विषय- पार्श्व-देवन भी कार्यव नडिसुवन्तागि साधे - परिहारवांगि आ-चन्द्रार्कस्थायियागि सलुबन्तागि अन्दिन
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