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नवसे यिनोपिन्दाद् ि। इवन - बोला णिगळेनिसि नेगळूदं बगदोळ् ॥
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मत्तवधिक - वलदिं किरिदलु
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• निपं समस्त पुरुषा- !
- निधानं माच - गौण्डनस्थि - निधानम् ॥
मार-गौण्ड
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वारिनिधि-वेष्टितो विँयो । ळारं तन्नन्नरिल्लेनिप्पं गुणदिम् ॥
लोकापकार-कारण- ।
क-कमव
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जैन - शिलालेख संग्रह
निधानम् ॥
मातृ-पितृ भक्त नखिळ- ।
ख्यातं पुण्य-क
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नी-लोकदोळगे लोकं बडेवं ॥
त्रिमूर्ति
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धर्म-तीर्थं प्रवर्त्तिसुत्र
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क तम्मनम्मङ्गणुगम् ॥
आदि-गौण्डन गुरु-कुळ- क्रमवेन्तप्पुदेन्दडे । श्रीमद्-इमिळ
द्रस्यामिन्दि
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• वारिसि
पर
वृन्द- वंद्य श्री पादरशेष-शास्त्र-वाद्धिंग
गुण- घनं श्री वासुपूज्य मुनि
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वादीश्वर हित - व्यापार देवर- शिष्य पेरुमाळे - देवरिगे ' न्तोषेद बसदि माडिसि श्री- देवर-प्रतिष्ठेयं माडिसि आ - देवरष्ट विधार्च्चनेगं रिषियराहार-दानवकं खीणद्वाक्कं नडवन्तागि बिट्ट तळ-वृत्ति ( आगेकी ५. पंक्तियों में दानकी चर्चा है ) सक-वर्ष ११७० प्लव-संवत्सरदुत्तरायण-राण-व्यतीपातदन्दु
तेनेय
रायण......R