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जैन-शिलालेख संग्रह
जैसा कि अपर निर्दिष्ट है, यह खान्दान भट्टसे शुरू हुआ।
इसके बाद लेखमें बताया है कि किस तरह केसिराज, श्री-शैलके मल्लिकार्जुन देवकी वेदीके 'लिग की तीन यात्रा और वहां कठिन व्रत धारण करनेके बाद, पवित्र पर्वतकी चट्टानसे बने हुए 'लिङ्ग को अपने साथ लाया और उसे सुगन्धिवर्ति नगरके बाहर नागरकेरें तालाबके पास अपने पिताके नामपर बनानेवाले मलिकार्जुन देव या मल्लिनाथ देवके मन्दिरमें स्थापित किया। बादमें इस मन्दिरके उच्च-पुरोहितका पद उसने लिङ्गय्य, लिंगशिव, या वामशक्तिके पुत्र देवशिव, उसके पुत्र वामशक्तिको दे दिया। इसके बाद लेखमें इस मन्दिरके लिये भूमि
और उसके दशवे अशके कई दानोका उल्लेख आया है। ये दान सर्वधारो संवत्सर, शक वर्ष १९५१ में, राजगुरु मुनिचन्द्रकी आशासे किये गये थे। उस समय शासनकर्ता बेणुयाम राबधानीमें महासामन्त राजा लचमोदेव थे। अन्तमें इस लेखके लेखकका नाम मादिराव दिया है । यह केसीराबका पुत्र था। ___ समस्तुंग शिरश्चुम्बिचन्द्रचामरचारवे [1] त्रैलोक्य नगरारम्भमूलस्तम्भाय शंभवे ॥ ईगे निरन्तरं सुखमनाश्रितर्गी गिरिजाधिनाथनु/गगनेन्द्रिनानळमरुत्सलिलात्मवराष्टमूर्तियं रागदे लोक यात्रेमे निभोगिसि तन्न मनोनुरागदि भीगिरियोळ् विराषिप सदाशिवनी विभु मल्लिकार्जुन । वधिमृतावनिमध्यद कनकाद्रिय तेंकदेसेय भरतवनियोल बनपदमेसेपुदु कुन्तळवेनसु सोगयिसुवुनि कूण्डीदेशं [1] आ देशाधि ईश्वरं वक्ष्मणनृपनेसेदं तत्सुतं कार्तवीर्यगादळ महादेवि तां श्रोसतियवर्गे जगजात विद(ज)नकाहार्द ( पेळ्के ) ळ विद्विद् क्षितिपति निवहक्कुन्बेगं पुढे तद्रामादिक्षोणि ईश शौर्य सकळगुणयुतं पुट्टेदं लक्ष्मीदेवं [1] सुकुमाराकारने श्रीसतिगुदयिसिदं धारणोचक संरक्षकने श्रीकार्तवीर्यावनिपतिसुतने रट्टवंशो
द्भवं राजकदाळ्सम्सेव्यने भाविसुवडे निदि लक्ष्मोदेवं प्रभावाधि(कने) तिमांशुवंश प्रकटित विमवं नोपंडो समीदेवं ॥ इदमोघं राष्ट्रकूटान्वयनतळबळं लक्ष्मीदेवं सुरूपन्वदोळ्ध (तेन्दोळ् शौर्य्यदो ) खिलबनानन्ददोळ् भायोळी. दायंदोळा कन्दर्पनं भानुवननिलबर्न रोहिणोनाथन पूर्वदिशाकान्तेशनं कणेननतिशयदि पोस्तु विख्यातिवेत्तं आ रट्टराज्यमं विस्तारिसि नलविन्दे रट्टराज्य स्थिर