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जैन-शिलालेख संग्रह
तम्मगागि..."कुन्तलापुरदल्लि सदाचारय्यरम्प नेमिचन्द्र-महारक-देवरिंगे नाळ-प्रमु.........."सावन्त-मारग्यनु विचारिसि... 'काळ-पावुण्ड...... मयण पेम्म......दियरं कण्डु तव..........बरद शीलाशासन तोडदु बलात्कारदि तम्म भक्तियागे सलुत्त........ बेण्णवळिळ-यल्लि......"कोण्डु नाळ-प्रभुगळु अधिकारि सावन्त-मारय्यनुं मनद्धारेयागि नेमिचन्द्र-भट्टारकदेवर कालं तोळदु धारा-पूर्वकयागि....."शिला-शासनवं बरेदु बेनबसेय दोडिकेय. ( महेशाके अन्तिम वाक्यावयव तथा श्लोक)
[(उक्त मितिको ) जिस समय वीर-बल्लाल-देव दोरसमुद्रके निवासस्थानमें था,-प्रधान मंत्री हिरिय-हेडेय-असवरमारय्यकी उपस्थितिमें, तमाम सरदार और किसानोंने (बहुत-सोंके नाम दिये हैं), कुन्तलापुरके आचार्य नेमिचन्द्र-भट्टारकदेवके लिये............":-सावन्त मारय्यने बांच-पड़ताल करके, बबर्दस्ती, उस लिखे हुए शिला-शासनको मिटवा दिया और अधिकारी सावन्त-मारय्यके साथ मिलकर, नाळ-प्रभुओने, नेमिचन्द्र-भट्टारक-देवके पाद-प्रक्षालन-पूर्वक.... एक शिला-शासन लिखवा करके दिया।
[E C, VII, Shimoga tl., No 65.]
मोग्ग-कला (बिना काल निर्देशका, पर गमग १२०९ ई.का]
गोग्गमें, वीरमद् मन्दिरके वाजेके साँचके दोषों भोर ] (बाई ओर)
माडिसिद जिनालयमव..... एल्जियुमिल्ल अरेनल । नाडे विराविसल बेळगवत्तिय-नाडोळनून-भक्तियिम् । कूडे विभूतियष्ट-विधार्चनेयेम्बिऊ कुन्ददन्तु कोण्ड-। आडुतविप्पेनिन्दुबेनसीचणन्तिरे भव्यनावव (न) म्॥ जरोळ वापदे बसदियन् । मोरन्तिरे माडि बेळगवत्तिय-नाडम् ।