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जैन-शिलालेख-संग्रह
पति विख्यात भरत, तप-साधक उपदेष्टा (गुरु) अनन्तकीचि-मुनिपः। उसने अपना बोवन, शील और उपाधियां पद्यमें गुत्थित करा लीं थीं।
[ EC, VII, Shikarpur, th., No. 196,]
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श्रवणबेलगोला-संस्कृत तथा काद। [शक १.१ १११६ ई.]
[जै०शि० सं, प्र० भा०] ४२९-४३० श्रवणबेल्गोला-कन्नड़ । [बिना कालनिर्देशका ]
जै० शि० सं०, प्र. मा०]
अद्रिः-संस्कृत तथा कमाई ।
[शक १११६=११६७ ई.] [अग्रिमें, बन-शकरी मन्दिरके सामनेके पाषाण पर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ।
बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ॥ स्वस्ति श्री-पृथ्वी-वल्लभं महाराजाधिराज परमेश्वरं परम-मट्टारकं यादव-कुळाम्बरधुमणि सम्यक्त्व-चूडामणि मलेराव-राज मलपरोळ गण्ड कदन-प्रचण्डनेकानवीरनसहाय-शूर शनिवार-सिद्धि गिरिदुर्ग-मल्ल चलदक-राम निश्शंक-प्रताप चक्रवर्ति होसळ-वीर-बल्लाल देवर राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि-प्रवर्द्धमानमाचन्द्रार्क-तारम्बरं सलत्तमिरे ।।