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असन्के लेख
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रिदरिदु दण्डनाय भरतात्मक बाहुबलि ... ... करो। नाभि-सुत-सुतर तेरेदेस- । नाभिगळ् आदि-प्रभाव-चरितप्रमवर ।
श्शोभित-शुभ-मति-युतर- । सोभितरी-भरत-बाहुबलि-दण्डेशर् ॥ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वरं तळकाडु-कोङ्ग-नङ्गलि-बनवसे-उच्चङ्गि-हानुनलुगोण्ड भुजबळ वीरगङ्गान् असहाय-शूर शनिवार-सिद्धि गिरि-दुर्ग-मल्ल चलदकराम निश्शंकप्रताप होयसळ-वीर-बल्लाळ देवरु श्रीमद्राजधानि-दोरसमुद्रद नेलेवीडिनोळु सुख-सङ्कथाविनोददि पृथ्वी-राज्यं गेय्युत्तमिरे शक-वर्ष ११०५ मेष शुभकृत्संवत्सरद मार्गशिर-शुद्ध-पाडिव सोमवारदन्दु कुमार-वीरनारसिंघ देवं जन्मोत्सव-महा-ढानटोळ तम्मन्वयद सिन्दगेरेय बळ्ळवळिय कलुकणि नाड वडिगणकरेंय अणुवसमुप्रद प्रभुत्वनुमं अणुवसमुद्रदल कन्नेबसदियागि माडिसि आ-बसदिगं चाफेयनहळ्ळिय बसदिगं देवपूजे आहारदानं नडवन्ताणि सेसेयं तेत्तु अणवसमुद्रद सिद्धायद मोदल होनोळगे इप्पत्तु-होन्न बळिसहित नाल्वत्तु-होन्नं ग्वाण-सहित गळिहि श्रीमन्महाप्रधान भरतिमय्य दण्डनायकरु श्रीमन्महाप्रधानं बाहुबलि-दण्डनायकरुं बळ्ळाल देवन श्रीहस्तदलु धारा-पूर्वकं हडदु श्रीमूलसंघ देशियगण पोस्तक-गच्छ कोण्डकुन्दान्वय इङ्गळेश्वरद बळि कोलापुरद सावन्तन-बसदिय प्रतिबद्ध श्रीमाघनन्दि-सिद्धांत-देवर शिष्यरु श्रीगंधविमुक्त-सिद्धांत-देवरु अवर शिष्यरु श्री-देवकीर्तिपण्डितदेवरु अवर शिष्यरप्प श्री देवचंद्र-पण्डितदेवगै शक वर्ष ११०६ नेय शोमकृत्संवत्सरद पुष्प शुद्ध दशमोसोमवारद उत्तरायण-संक्रमण-महादानदलु धारा-पूर्बकं माडि काट्ट दत्तिगळ वृत्ति ॥ ( आगेकी ६ पंक्तियोंमें दानकी विशेष चर्चा और हमेशाकी तरह अन्तिम वाक्यावली तथा श्लोक हैं)
[इस लेख में सबसे पहले जिनशासनकी प्रशंसा है। वीतराग । ( अपने पदों सहित ) त्रिभुवनमल्ल विनेयादित्य-होसळने कोङ्कण, आम्बखेड, बयलनाड् , तलेकाह और साविमलेसे घिरी हुई तमाम भूमिमें दुष्टनिग्रह-शिष्ट प्रतिपालन किया था।