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पण्डितरह ल्लिके लेख
दिगे नेगळिदन्दु-मण्डल दोळि कळमनीगलागुमे ॥ कळ नसलो रे... .......। जल्पर मातिरखि पोलरीश्वरनेम्बी-1 कळूर-महीमनप्पिद | कल्प- लता - ललिते "माचिपक परमाप्तं जिननासनिन्तु जनकं श्री - विङिगाङ्कं गुणो-1
रतन चन्दकब्बे येनिसिद्द - माचियक सद्-1 गुरुगळ् पोस्तक-गच्छ देशिय-गण-श्रीकोण्ड कुन्दान्वयो -1 द्धरणर् ग्गण्डविमुक्त-देब - मुनिवर श्री-मूल- सङ्घोत्तमर् ॥ अन्तनून-गुण-रत्न-मण्डनेमुं चातुर वर्ण समुदयैक- शरणेयुमेनिसि नेगल्द श्रीमत्पेर-गडिति माचियक्कं श्री-मय्दवोळत दिव्य-तीर्थदोळ् सत्-धम्र्म्मापंचेयिम् । दुशित विमान । नाडेयु मिगिलेनिसि नेगळ्द जिन-मन्दिरमं । कूडे घरे पोगळे माचवे । माडिसिदलगण्य- पुण्य- युवती रत्न ॥ अन्तु माडिमि ||
श्रा-बधु-माचवे सले प- । द्मावतिगेरेयेम्ब केरेय कट्टिसि कोट्टळ् । भाविसे बसदिगे तन्न य । शो-वधु दिग्-वधुगळोडने नलिदाडुविनम् || मत्तमा-तीर्थद बसदिय देवरिगे मुन्न नडेव वृत्तिय सीमा -सम्बन्धमेन्तेन्दडे ( यहाँ दानकी विशेष विगत आती है ) मङ्गळ महा श्री । ( वही अन्तिम श्लोक )....
[ बिन-शासनकी प्रशंसा । जब भुजबळ वोर- गङ्ग होयसळ नारसिंह- देव, शान्ति और बुद्धिमत्तासे शासन करते हुए, राजधानी दोरसमुद्र में विराजमान थे :- तत्पादपद्मोपजीवी, - ( प्रशंसा सहित ) दण्डनाथ - एरेयङ्ग था । दण्डनायक - एरेयङ्गमय्यका पादोपजीवी ईश्वरचम्पति था । वे दोनों आपसमें श्वसुर और दामाद थे । ( उनकी प्रशंसायें ), और उसने जिनालयकी मरम्मत करवायी थी । उसकी ( ईश्वर चमूपतिकी ) पत्नी माचिक थी, जो नाकि-सेट्टि और नागवेके पुत्र साहणि-बिट्टिगके चन्दवेकी ज्येष्ठ पुत्री थी; उसकी प्रशंसायें । जिनपति उसके इष्टदेव, पिता ब्रिट्टिग, माँ चन्दिकन्बे थीं । माचियक के गुरु पुस्तक-गच्छ, देशिय गण, कोण्डकुन्दान्वय तथा मूलसंघ के गण्डविमुक्त-देव-मुनि थे ।
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