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कोन्नूरके लेख
६४.द-कान्तम् पुदिदत्ती मेषचन्द्र-त्र (3) तितिळक-जगति-कीर्ति प्रकाशम् ॥
[४६ ] वेदग्ध्य-श्री-वधूटी-पतिरखिळ-गुणालंकृतिम्घ चं६५. द्र-विद्यस्यात्मजातो मदन-महिभृतो भेदने वज्रपातः।। सैद्धांतान्यू
(व्यू ) ह-चूडामणिरनुपळ (म) चिन्तामणि६६. म्भू (भू ) बनानाम् योऽभूत् सौजन्य-रुन्द्र-श्रियमवति महौ वीरनन्दी
मुनींद्रः ॥ [ ४७ ] यश्शब्दज्ञ-नभस्थली-दिनमणिः काव्यज्ञ-चूड़ाम६७. णिर्यस्तर्कस्थिति-कौमुदी-हिमकरस्तूर्य्यत्रयाब्जाकरः [1] यस्सिद्धान्त-विचार
सार-विषणो रत्न-त्रयी-भूषणः स्थे६८. यादुद्धत-वादि-भूभृदशनिः श्रो-चोरनन्दि-मुनिः ॥ [ ४८ ] यन्मूर्तिजगतां
बनस्य नयने कर्पूरपूरायते यवृत्तिर्विदुषां त६६. तेश्श्रवणयोर्माणिक्यभूषायते [1] यत्कीर्तिः ककुभां श्रियः कचभरे मल्लील
तांतायते जेनीयाद् भुवि वीरनन्दि-मुनिपस्सै७०. द्धांत-चक्राधिपः ॥ [ ४६] * श्री-कोण्डकुन्दान्वयाम्बर-धुमणि विद्वजन
शिरोमणि समस्तानवद्य-विद्याविलासिनी-विलास-मूर्ति श्री-धोरनन्दि-सै [द्धा]७१. न्तिक-चक्रवर्त्तिनु श्रीमन् महास्थानं कोळनूर महाप्रभु-हुलियमरसतुं मूरु
पुर-पञ्च-मठ-स्थानङ्गळु ताम्र-शासन [ मं] ७२. नोडि बरेयिसिमेनल्का शासनदोन्तिटुंदन्ती शिलाशासनम बरेयि f[स् ]
दरु [॥ ] मङ्गळ महा-श्री श्री श्री नमो'.....[]
[ इस लेखमें (बो मूल लेख की पं० ५६-७२ तकमें है ), जैनधर्म तथा मेघचन्द्र-विद्य और उनके पुत्र वीरनन्दी इन दो मुनियोंकी प्रशंसाके बाद, बताया गया है कि कोळनूरके 'महाप्रभु' हुलियमरस तथा और लोगोंकी प्रार्थनापर वीरनन्दीने एक ताम्र-शासनको फिरसे यहाँपर शिला-शासनके रूपमें लिखवाया। इस ताम्र-शासनको इन लोगोंने स्वयं उनके पास देखा था।
.. यहाँपर कुछ अक्षर (कमसे कम कः ) धिस गये हैं।